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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
पृथिवी तत्व पचास पल, जल तत्व चालीस पल, अग्नि तत्त्व तीस पल, वायु तत्त्व बीस पल और आकाश तत्व दश पले, इस प्रकार से तीनों नाड़ियाँ (तीनों स्वर) उक्त पाँचों तत्त्वों के साथ दिन रात ( सदा) प्रकाशमान रहती हैं।
पाँचों तत्त्वों के ज्ञान की सहज रीतियाँ । १-पांच रंगों की पाँच गोलियाँ तथा एक गोली विचित्र रंग की बना कर इन छवों गोलियों को अपने पास रख लेना चाहिये और जब बुद्धि में किसी तत्त्व का विचार करना हो उस समय उन छःवों गोलियों में से किसी एक गोली को आँख मीच कर उठा लेना चाहिये, यदि बुद्धि में विचारा हुआ तथा गोली का रंग एक मिल जावे तो जान लेना चाहिये कि-तत्त्व मिलने लगा है।
२-अथवा-किसी दूसरे पुरुष से कहना चाहिये कि-तुम किसी रंग का विचार करो, जब वह पुरुष अपने मन में किसी रंग का विचार कर ले उस समय अपने नाक के स्वर में तत्व को देखना चाहिये, तथा अपने तत्त्व को विचार कर उस पुरुष के विचारे हुए रंग को बतलाना चाहिये कि-(तुमने अमुक फलाने ) रंगका विचार किया था, यदि उस पुरुष का विचारा हुआ रंग ठीक मिल जावे तो जान लेना चाहिये कि-तत्व ठीक मिलता है।
३-अथवा-काच अर्थात् दर्पण को अपने ओष्टों ( होठों) के पास लगा कर उस के ऊपर बलपूर्वक नाक का श्वास छोड़ना चाहिये, ऐसा करने से उस दर्पण पर जैसे आकार का चिह्न हो जावे उसी आकार को पहिले लिखे हुए तत्त्वों के आकार से मिलाना चाहिये, जिस तत्त्व के आकार से वह आकार मिल जावे उस समय वही तत्व समझना चाहिये।
४-अथवा-दोनों अङ्गठों से दोनों कानों को, दोनों तर्जनी अङ्गुलियों से दोनों आँखों को और दोनों मध्यमा अङ्गुलियों से नासिका के दोनों छिद्रों को बन्द कर ले और दोनों अनामिका तथा दोनों कनिष्ठिका अङ्गुलियों से (चारों अङ्गुलियों से) भोठों को ऊपर नीचे से खूब दाब ले, यह कार्य करके एकाग्र चित्त से गुरु की बताई हुई रीति से मन को भृकुटी में ले जावे, उस जगह जैसा और जिस रंग का बिन्दु मालूम पड़े वही तत्त्व जानना चाहिये । __५-ऊपर कही हुई रीतियों से मनुष्य को कुछ दिन तक तत्वों का साधन करना चाहिये, क्योंकि कुछ दिन के अभ्यास से मनुष्य को तत्त्वों का ज्ञान होने लगता है और तत्वों का ज्ञान होने से वह पुरुष कार्याकार्य और शुभाशुभ आदि होनेवाले कार्यों को शीघ्र ही जान सकता है।
१-सब मिलाकर १५० पल हुए, सोही ढाई घडी वा एक घण्टे के १५० पल होते हैं । २-प्रकाशमान' अर्थात् प्रकाशित ॥ ३-पाँच रंग वे ही समझने चाहिये जो कि-पहिले पृथिवी आदि के लिख चुके हैं अर्थात् पीला, सफेद, लाल, हरा और काला ॥
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