________________
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
और नगर के लोगों ने सुना तो शीघ्र ही वहाँ भाकर उपस्थित हो गये और उन्हों ने कुमार तथा उमरावों को शाप के कारण पाषाणवत् जड़बुद्धि देखा, बस उन्हें ऐसी दशा में देख कर राजा का अन्तःकरण विह्वल हो गया और उस ने उसी दुःख से अपने प्राणों को तज दिया, उस समय राजा के साथ में रानियाँ भी आई थीं, जिन में से सोलह रानियाँ तो सती हो गई और शेष रानियाँ बाह्मणों और ऋषियों के शरणागत हुई, ऐसा होते ही आस पास के रजवाड़े वालों ने उस का राज्य दवा लिया, तब राजकुमार की स्त्री उन्हीं बहत्तर उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर रुदन करती हुई वहाँ आई और ब्राह्मणों तथा ऋषियों के चरणों में गिर पड़ी, उन के दुःख को देख कर ऋषियों ने शिव जी का अष्टाक्षरी मन्त्र देकर उन्हें एक गुफा बतला दी और यह वर दिया कि-तुम्हारे पति महादेव पार्वती के वर से शुद्धबुद्धि हो जावेंगे, तब तो वे सब स्त्रियाँ वहाँ बैठ कर शिवजी का स्मरण करने लगीं, कुछ काल के पीछे पार्वती जी के सहित शिव जी वहाँ आये, उस समय पार्वती जी ने महादेव जी से पूछा कि-यह क्या व्यवस्था है ? तब शिव जी ने उन के पूर्व इतिहास का वर्णन कर उसे पार्वती जी को सुनाया, जब राजा के कुँवर की रानी और वहत्तर उमरावों की ठकुरानियों को यह मालूम हुआ कि-सचमुच पार्वती जी के सहित शिव जी पधारे हैं, तब वे सब स्त्रियाँ आ कर पार्वती जी के चरणों का स्पर्श करने लगी, उन की श्रद्धा को देख कर पार्वती जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि-"तुम सौभाग्यवती धनवती तथा पुत्रवती हो कर अपने २ पतियों के सुख को देखो और तुम्हारे पति चिरञ्जीव रहें" पार्वती जीके इस वर को सुन कर रानियाँ हाथ जोड़ कर कहने लगी कि-"हे मातः ! आप समझ कर वर देओ, देखो! यहाँ तो हमारे पतियों की यह दशा हो रही है" उन के वचन को सुन कर पार्वती जी ने महादेव जी से प्रार्थना कर कहा कि-"महाराज! इन के शाप का मोचन करो" पार्वती जी की प्रार्थना को सुनते ही शिव जी ने उन सब की मोहनिद्रा को दूर कर उन्हें चैतन्य कर दिया, बस वे सब सुभट जाग पड़े, परन्तु उन्हों ने मोहवश शिव जी को ही घेर लिया तथा सुजन कुँवर पार्वती जी के रूप को देख कर मोहित हो गया, यह जान कर पार्वती जी ने उसे शाप दिया कि"अरे मँगते ! तू माँग खा" बस वह तो जागते ही याचक हो कर माँगने लगा, इस के पीछे वे बहत्तरों उमराव बोले कि-"हे महाराज ! हमारे घर में अब राज्य तो रहा नहीं है, अब हम क्या करें? तब शिव जी ने अहा कि-"तुम क्षत्रियत्व तथा शस्त्र को छोड़ कर वैश्य पद का ग्रहण करो" शिव जी के वचन को सब उमरावों ने अङ्गीकृत किया परन्तु हाथों की जड़ता के न मिटने से वे हाथों से शस्त्र का त्याग न कर सके, तब शिव जी ने कहा कि-"तुम सब इस सूर्यकुण्ड में स्नान करो, ऐसा करने से तुम्हारे हाथों की जड़ता मिट कर शस्त्र छूट जावेंगे" निदान ऐसा ही हुआ कि सूर्यकुण्ड में स्नान करते ही उन के हाथों की जड़ता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com