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पञ्चम अध्याय।।
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मिट गई और हाथों से शस्त्र छूट गये, तब उन्हों ने तलवार की तो लेखनी, भालों की डंडी और ढालों की तराजू बना कर वणिज पद (वैश्य पद) का ग्रहण किया, जब ब्राह्मणों को यह खबर हुई कि-हमारे दिये हुए शाप का मोचन कर शिव जी ने उन सब को वैश्य बना दिया है, तब तो वे (ब्राह्मण) वहाँ आ कर शिव जी से प्रार्थना कर कहने लगे कि "हे महाराज ! इन्हों ने हमारे यज्ञ का विध्वंस किया था अतः हम ने इन्हें शाप दिया था, सो आप ने हमारे दिये हुए शाप का तो मोचन कर दिया और इन्हें वर दे दिया, अब कृपया यह बतला. इये कि-हमारा यज्ञ किस प्रकार सम्पूर्ण होगा?" ब्राह्मणों के इस वचन को सुन कर शिव जी ने कहा कि-"अभी तो इन के पास देने के लिये कुछ नहीं है परन्तु जब २ इन के घर में मङ्गलोत्सव होगा तब २ ये तुम को श्रद्धानुकूल यथाशक्य द्रव्य देते रहेंगे, इस लिये अब तुम भी इन को धर्म में चलाने की इच्छा करो" इस प्रकार वर दे कर इधर तो शिव जी अपने लोक को सिधारे, उधर वे बहत्तर उमराव छःवों ऋषियों के चरणों में गिर पड़े और शिष्य बनने के लिये उन से प्रार्थना करने लगे, उन की प्रार्थना को सुन कर ऋषि यों ने भी उन की बात को स्वीकृत किया, इस लिये एक एक ऋषि के बारह २ शिष्य हो गये, बस वे ही अब यजमान कहलाते हैं । ___ कुछ दिन पीछे वे सब खंडेला को छोड़ कर डीडवाणा में आ वसे और चूंकि वे बहत्तर खाँपों के उमराव थे इस लिये वे बहत्तर खाँप के डीडू महेश्वरी कहलाने लगे, कालान्तर में (कुछ काल के पीछे) इन्हीं बहत्तर खाँपों की वृद्धि (बढ़ती) हो गई अर्थात् वे अनेक मुल्कों में फैल गये, वर्तमान में इन की सब खाँ करीव ७५० हैं, यद्यपि उन सब खाँपों के नाम हमारे पास विद्यमान ( मौजूद ) हैं तथापि विस्तार के भय से उन्हें यहाँ नहीं लिखते हैं।
महेश्वरी वैश्यों में भी यद्यपि बड़े २ श्रीमान हैं परन्तु शोक का विषय है किविद्या इन लोगों में भी बहुत कम देकी जाती है, विशेष कर मारवाड़ में तो हमारे ओसवाल बन्धु और महेश्वरी बहुत ही कम विद्वान् देखने में आते हैं, विद्या के न होने से इन का धन भी व्यर्थ कामों में बहुत उठता है परन्तु विद्यावृद्धि आदि शुभ कार्यों में ये लोग कुछ भी खर्च नहीं करते हैं, इस लिये हम अपने मारवाड़ निवासी महेश्वरी सजनों से भी प्रार्थना करते हैं कि-प्रथम तो-उन को विद्या की वृद्धि करने के लिये कुछ न कुछ अवश्य प्रबन्ध करना चाहिये, दूसरेअपने पूर्वजों (बड़ेरों वा पुरुषाओं) के व्यवहार की तरफ ध्यान देकर औसर और विवाह आदि में व्यर्थव्यय (फिजूलखर्ची) को बन्द कर देना चाहिये, तीसरे-कन्या विक्रय, बालविवाह, वृद्ध विवाह तथा विवाह में गालियों का गाना आदि कुरीतियों को बिलकुल उठा देना चाहिये, चौथे-परिणाम में क्लेश देने वाले तथा निन्दनीय व्यापारों को छोड़ कर शुभ वाणिज्य तथा कला कौशल के प्रचार की ओर ध्यान देना चाहिये कि जिस से उन की लक्ष्मी की वृद्धि हो और देश
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