________________
पञ्चम अध्याय ।
६६५
एक बौद्ध जैन साधु राजकुमार से मिला और उस ने राजकुमार को अहिंसा का उपदेश देकर जैनधर्म का उपदेश दिया इस लिये उस उपदेश के प्रभाव से राजकुमार की बुद्धि शिवमत से हट कर जैन मत में प्रवृत्त हो गई और वह ब्राह्मणों से यज्ञसम्बन्धी हिंसा का वर्णन और उस का खण्डन करने लगा, आखिरकार उस ने अपनी राजधानी की तीनों दिशाओं में फिर कर सब जगह जीवहिंसा को बंद कर दिया, केवल एक उत्तर दिशा बाकी रह गई, क्योंकिउत्तर दिशा में जाने से राजा ने पहिले ही से उसे मना कर रक्खा था, जब राजकुमार ने अपनी राजधानी की तीनों दिशाओं में एकदम जीवहिंसा को बंद कर दिया और नरमेध, अश्वमेध तथा गोमेध आदि सब यज्ञ बंद किये गये तब ब्राह्मणों और ऋषिजनों ने उत्तर दिशा में जाकर यज्ञ का करना शुरू किया, जब इस बात की चर्चा राजकुमार के कानों तक पहुँची तब वह बड़ा क्रुद्ध हुआ परन्तु पिता ने उत्तर दिशा में जाने का निषेध कर रक्खा था अतः वह उधर जाने में सङ्कोच करता था, परन्तु प्रारब्धरेखा तो बड़ी प्रबल होती है, बस उसे ने अपना ज़ोर किया और राजकुमार की उमरावों के सहित बुद्धि पलट गई, फिर क्या था-ये सब शीघ्र ही उत्तर दिशा में चले गये और वहाँ पहुँच कर संयोनवश सूर्यकुण्ड पर ही खड़े हुए; वहाँ इन्हों ने देखा कि-छः ऋषीश्वरों (पाराशर और गौतम आदि) ने यज्ञारम्भ कर कुण्ड, मण्डप, ध्वजा
और कलश आदि का स्थापन कर रक्खा है और वे वेदध्वनिसहित यज्ञ कर रहे हैं, इस कार्यवाही को देख, वेदध्वनि का श्रवण कर और यज्ञशाला के मण्डप की रचना को देख कर राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह मन में विचारने लगा कि-देखो ! मुझ को तो यहाँ आने से राजा ने मना कर दिया और यहाँ पर छिपा कर यज्ञारम्भ कराया है, राजा की यह चतुराई मुझे आज मालूम हुई, यह विचार कर राजकुमार अपने साथ के उमरावों से बोला कि-"ब्राह्मणों को पकड़ लो और सम्पूर्ण यज्ञसामग्री को छीन कर नष्ट कर डालो, राजकुमार का यह वचन ज्यों ही ब्राह्मणों और ऋषियों के कर्णगोचर हुआ त्यों ही उन्हों ने समझा कि राक्षस आन पड़े हैं, बस उन्हों ने तेजी में आकर राजकुमार को न पहिचान कर किन्तु उन्हें राक्षस ही जान कर घोर शाप दे दिया कि- "हे निर्बुद्धियो ! तुम लोग पाषाणवत् जड़ हो जाओ" शाप के देते ही बहत्तर उमराव और एक राजपुत्र घोड़ों के सहित पाषणवत् जड़बुद्धि हो गये अर्थात् उन की चलने फिरने देखने और बोलने आदि की सब शक्ति मिट गई और वे मोहनिद्रा में निमग्न हो गये, इस बात को जब राजा
१-यह बात तो अंग्रेजों ने भी इतिहासों में बतला दी है कि-बौद्ध और जैनधर्म एक नहीं हैं किन्तु अलग २ हैं परन्तु अफसोस है कि-इस देश के अन्य मतावलम्बी विद्वान् भी इस बात में भूल खाते हैं अर्थात् वे बौद्ध और जैन धर्म को एक ही मानते हैं, जब विद्वानों की यह व्यवस्था है तो बेचारे भाट बौद्ध और जैनधर्म को एक लिखें इस में आश्चर्य ही क्या है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com