________________
पञ्चम अध्याय ।
६१३
गई थी, उस के मरने के बाद मैं ने दूसरा विवाह किया परन्तु वह स्त्री भी नहीं रही, अब मेरा विचार है कि मैं अपना तीसरा विवाह इस हीरे को निकाल कर (बेंच कर ) करूंगा" जौहरी के सत्यभाषण पर राजा बहुत खुश हुआ और उस को ईनाम देकर विदा किया, उस के जाने के बाद राजा चन्द्रसेन ने भरी सभा में पासू जी से कहा कि-"वाह ! पारख जी वाह ! आप ने खूब ही परीक्षा की" बस उसी दिन से राजा पासू जी को पारख जी के नाम से पुकारने लगा, फिर क्या था यथा राजा तथा प्रजा अर्थात् नगरवासी भी उन्हें पारख जी कह कर पुकारने लगे। पाँचवें सेल्हस्थ जीकी औलादवाले लोग गद्दहिया कहलाये ॥ भैंसांसाह ने गुजरात देश में गुजरातियों की जो
लाँग छुडवाई उस का वर्णन । भैंसा साह कोट्यधिपति तथा बड़ा नामी साहूकार था, एक समय भैसा साह की मातुःश्री लक्ष्मीबाई २५ घोड़ों, ५ रथों १० गाड़ियों और ५ ऊँटों को साथ लेकर सिद्धगिरि की यात्रा को रवाना हुईं, परन्तु दैवयोग से वे द्रव्य की सन्दूक (पेटी) को साथ में लेना भूल गई, जब पाटन नगर में (जो कि रास्ते में था) मुकाम किया तब वहाँ द्रव्य की सन्दूक की याद आई और उस के लिये अनेक विचार करने पड़े, आखिरकार लक्ष्मीबाई ने अपने ठाकुर (राजपूत) को भेज कर पाटन नगर के चार बड़े २ व्यवहारियों को बुलवाया, उन के बुलाने से गर्धभसाह आदि चार सेठ आये, तब लक्ष्मीबाई ने उन से द्रव्य (रुपये) उधार देने के लिये कहा, लक्ष्मीबाई के कथन को सुन कर गर्धभसाह ने पूछा कि-"तुम कौन हो और कहाँ की रहनेवाली हो" इस के उत्तर में लक्ष्मीबाई ने काहा कि "मैं भैंसे की माता हूँ" लक्ष्मीबाई की इस बात को सुन कर गर्धभसाह ने उन डोकरी लक्ष्मीबाई से हँसी की अर्थात् यह कहा की-"भैंसा तो हमारे यहाँ पानी की पखाल लाता है" इस प्रकार लक्ष्मीबाई का उपहास (दिल्लगी) करके वे गर्धभसाह आदि चारों व्यापारी चले गये, इधर लक्ष्मीबाई ने एक पत्र में उक्त सब हाल लिखकर एक ऊँटवाले अपने सवार को उस पत्र को देकर अपने पुत्र के पास भेजा, सवार बहुत ही शीघ्र गया और उस पत्र को अपने मालिक भैंसा साह को दिया, भैंसा साह उस पत्र को पढ़ कर उसी समय बहुत सा द्रव्य अपने साथ में लेकर रवाने हुआ और पाटन नगर में पहुँच कर इधर तो स्वयं
१-यह भी सुनने में भाया है कि गद्धा साह (भैसा साह के भाई ) की औलाद वाले लोग गद्दहिया कहलाये ॥२-इन का निवासस्थान माँडवगढ़ था, जिस के मकानों का खंडहर अब तक विद्यमान है, कहते हैं कि-इन के रहने के मकान में कस्तूरी और अम्बर आदि सुगन्धित द्रव्य पोते जाते थे, इन के पास लक्ष्मी इतनी थी कि-जिस का पारावार (ओर छोर) नहीं था, भैसा साह और गद्दा साह नामक दो भाई थे ।।
५२ जै० सं०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com