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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
गर्घभसाह आदि उस नगर के व्यापारियों से तेल लेना शुरू किया और उधर जगह २ पर अपने गुमाश्तों को भेज कर सब गुजरात का तेल खरीद करवा लिया तथा तेल की नदी चलवा दी, आखिरकार गर्धभसाह आदि माल को हाजिर नहीं कर सके अर्थात् बादे पर तेल नहीं दे सके और अत्यन्त लजित होकर सव व्यापारियों को इकट्ठा कर लक्ष्मीबाई के पास जा कर उन के पैरों पर गिर कर बोले कि "हे माता ! हमारी प्रतिष्ठा अब आप के हाथ में है" लक्ष्मीबाई अति कृपालु थीं अतः उन्हों ने अपने पुत्र भैंसेसाह को समझा दिया और उन्हें क्षमा करने के लिये कह दिया, माता के कथन को भैंसेसाह ने स्वीकार कर लिया और अपने गुमाश्तों को आज्ञा दी कि यादगार के लिये इन सब की एक लाँग खुलवा ली जावे और इन्हें माफी दी जावे, निदान ऐसा ही हुआ कि-भैंसासाह के गुमाश्तों ने स्मरण के लिये उन सब गुजरातियों की धोती की एक लाँग खुलवा कर सब को माफी दी और वे सब अपने २ घर गये, वहां पर भैंसेसाह को रुपारेल विरुद मिला।
सातवीं संख्या-भण्डशाली, भूरा गोत्र । श्री लोद्वापुर पट्टन (जो कि जैसलमेर से पाँच कोस पर है) के भाटी राजपूत सागर रावल के श्रीधर और राजधर नामक दो राजकुमार थे, उन दोनों को विक्रम संवत् ११७३ ( एक हजार एक सौ तेहत्तर) में युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी महाराज ने प्रतिबोध देकर उन का महाजन वंश और भण्डशाली गोत्र स्थापित किया, भण्डशाली गोत्र में थिरुसाह नामक एक बड़ा भाग्यशाली पुरुष हो गया है, इस के विषय में यह बात प्रसिद्ध है कि-यह धी का रोजगार करता था, किसी समय इस ने रुपासियाँ गाँवकी रहने वाली घी बेचने के लिये आई हुई एक स्त्री से चित्राबेल की एंडुरी (इंढोणी) किसी
१-रुपारेल नामक एक जानवर होता है वह जिस के पास रहता है उस के पास अखूट (अविचल ) द्रव्य होता है ।। २-भण्डशाल में वासक्षेप दिया था इसलिये इनका भण्डशाली गोत्र स्थापित किया, इसी नाम का अपभ्रंश पीछे से भणशाली ( भण्डाशाली ) हो गया है । ३-यह स्त्री जाति की जाटिनी थी और यह घी बेंचने के लिये रुपासियाँ गाँव से लोद्रवापुर पट्टन को चली थी, इस ने रास्ते में जंगल में से एक हरी लता (बेल) को उखाड़ कर उस की एंडुरी बनाई थी और उस पर घी की हाँड़ी रख कर यह थिरुसाह की दूकान पर आई, थिरसाह ने इस का घी खरीद किया और हाँड़ी में से घी निकालने लगा, जब घी निकालते २ बहुत देर हो गई और उस हाँड़ी में से घी निकलता ही गया तब थिरुसाह को सन्देह हुआ
और उस ने विचारा कि-इस हाँड़ी में इतना घी कैसे निकलता जाता है, जब उस ने एंडुरी पर से हाँड़ी को उठा कर देखा तो उस में घी नहीं दीखा, बस वह समझ गया कि यह एंडुरी का ही प्रभाव है, यह समझ कर उस ने मन में विचारा कि-इस एंडुरी को किसी प्रकार लेना चाहिये, यह विचार कर थिरुसाह ने कौड़ियाँ लगी हुई एक सुन्दर एंडुरी उस जाटिनी को दी और उस चित्राबेल की एंडुरी को उठा कर अपनी दुकान में रख लिया ।
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