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________________ द्वितीय अध्याय । खोटे राजा का राज्य होने से राजा का न होना ही अच्छा है, दुष्ट मित्र की मित्रता होने से मित्र का न होना ही अच्छा है, कुभार्या के होने से स्त्री का न होना ही अच्छा है और खराब चेले के होने से चेले का न होना ही अच्छा है ॥१४॥ राज कुराज प्रजा न सुख, नहिं कुमित्र रति राग ॥ नहिं कुदार सुख गेह को, नहिं कुशिष्य यशभाग ।। ९५ ॥ दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख नहीं होता, कुमित्र से आनन्द नहीं होता, कुभाया से घर का सुख नहीं होता और आज्ञा को न माननेवाले शिष्य से गुरु को यटा नहीं मिलता है ॥ ९५ ॥ इक इक वक अरु सिंघ से, कुकुट से पुनि चार ॥ पांच काग अरु श्वान षट्, खर त्रिहुँ शिक्षा धार ।। ९६ ॥ बगुले और सिंह से एक एक गुण सीखना चाहिये, कुक्कुट (मुर्गे) से चार गुण साखने चाहियें, कौए से पांच गुण सीखने चाहिये, कुत्ते से छः गुण सीखने चाहिये और गर्दभ (गदहे ) से तीन गुण सीखने चाहिये ॥ ९६ ॥ छोटे मोटे काज को, साहस कर के यार ॥ जैसे तैसे साधिये, सिंघ सीख इक धार ॥ ९७ ॥ हे मित्र ! सिंह से यह एक शिक्षा लेनी चाहिये कि कोई भी छोटा या बड़ा काम करना हो उस में साहस (हिम्मत) रख कर जैसे बने वैसे उस काम को सिद्ध करना चाहिये, जैसे कि सिंह शिकार के समय अपनी पूर्ण शक्ति को काम में लाता है॥ ९७ ॥ करि संयम इन्द्रीन को, पण्डित बगुल समान ॥ देश काल बल जानि के, कारज करै सुजान ॥ ९८ ॥ वाले से यह एक शिक्षा लेनी चाहिये कि-चतुर पुरुष अपनी इन्द्रियों को रोक कर बगुले के समान एकाग्र ध्यान कर तथा देश और काल का विचार कर अपने नय कार्यों को सिद्ध करे ॥ ९८॥ समर प्रवल अति रति प्रबल, नित प्रति उठत सवार । खाय अशन सो बांटि के, ये कुक्कुट गुन चार ॥ ९९ ॥ लड़ाई में प्रबलता रखना (भागना नहीं), रति में अति प्रबलता रखना, प्रतिदिन तड़के उठना और भोजन बांट के खाना, ये चार गुण कुक्कुट से सीखने चाहियें ॥ ९९॥ १-गुणग्राही होना सत्पुरुषों का स्वाभाविक धर्म है –अतः इन बक आदि से इन गुणों के ग्रहण करने का उपदेश किया गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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