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जैनसम्प्रदायशिक्षा। मैथुन गुप्त रु धृष्टता, अवसर आलय देह ॥
अप्रमाद विश्वास तज, पांच काग गुण लेह ॥ १० ॥ गुप्तरीति से ( अति एकान्त में ) स्त्री से भोग करना, पृष्टता (ढिठाई), अवसर पाकर घर बनाना, गाफिल न रहना और किसी का भी विश्वास न करना, ये पांच गुण कौए से सीखने चाहिये ॥ १० ॥
बहुभुक थोड़े तुष्टता, सुखनिद्रा झट जाग।
स्वामिभक्ति अरु शूरता, षट गुण श्वान सुपाग ॥ १०१ ॥ अधिक खानेवाला होकर भी थोड़ा ही मिलने पर सन्तोष करना, सुख से नींद लेना परन्तु तनिक आवाज होने पर तुरन्त सचेत हो जाना, स्वामि में भक्ति (जिस का अन्न जल खावे पीवे उस की भक्ति) रखना और अपने कर्तव्य में शूर वीर होना, ये छः गुण कुत्ते से सीखने चाहियें ॥ १०१॥
थाक्यो हू ढोवै सदा, शीत उष्ण नहिं चीन्ह ॥
सदा सुखी मातो रहै, रासभशिक्षा तीन्ह ॥ १०२ ॥ अत्यन्त थक जाने पर भी बोझ को ढोते ही रहना (परिश्रम में लगे ही रहता ) तथा गर्मी और सर्दी पर दृष्टि न देना और सदा सुखी व मैम्त रहना, ये तीन गुण रासभ (गधे ) से सीखने चाहियें ॥ १०२ ॥
जो नर धारण करत हैं, यह उत्तम गुण बीस ॥
होय विजय सब काम में, तिन्ह छलिया नहिं दीस ॥१०३।। ये वीस गुण जो शिक्षा के कहे हैं-इन गुणों को जो मनुष्य धारण करेगा वह सब कामों में सदा विजयी होगा (उसके सब कार्य सिद्ध होंगे) और उस पुरुष को कोई भी नहीं छल सकेगा ॥ १०३ ॥
अर्थनाश मनताप को, अरु कुचरित निज गेहु ॥
नीच वचन अपमान ये, धीर प्रकाशि न देह ॥१०४॥ धन का नाश, मन का दुःख (फिक), अपने घर के खोटे चरित्र, नीच का कहा हुआ वचन और अपमान, इतनी बातों को बुद्धिमान् पुरुष कभी प्रकाशित न करे ॥ १०४ ॥
धन अरु धान्य प्रयोग में, विद्या संग्रह कार ॥ आहाररु व्यवहार में, लज्जा अवस निवार ॥१०५॥
१-क्योंकि नीतिशास्त्र में किसी का भी विश्वास न करने का उपदेश दिया गया है, देखो पिछला ६९ वां दोहा॥२-अर्थात चिन्ता को अपने पास न आने देना. क्योंकि चिन्ता अत्र दुःखदायिनी होती है ।। ३-~-क्योंकि इन बातों को प्रकाशित करने से मनुष्य का उलटा उपहास होता है तथा लघुता प्रकट होती है ।।
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