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________________ चतुर्थ अध्याय। ५४९ ४-गोखुरू, ईशवगोल, तुकमालम्बा, बीदाना, बहुफली तथा मौलेठी, इन में से चाहे जिस पदार्थ का पानी पीने से पेशाब की वेदना (पीड़ा) कम हो जाती है। ९-सब से प्रथम इस रोग में यह औषधि देनी चाहिये कि-लाइकर आमोनी एसेटेटिस दो आँस, एसेटेट आफ पोटास नब्बे (९०) ग्रेन, गोंद का पानी एक औंस तथा कपूर का पानी तीन औंस, इन सब दवाओं को मिला कर (चौथाई) भाग दिन में चार वार देना चाहिये, परन्तु मरण रहे कि उक्त दवा का जो प्रथम भाग (पहिला चौथाई हिस्सा) दिया जावे उस के साथ दस्त लाने के लिये या तो चार ड्राम विलायती निमक मिला देना चाहिये अथवा समय तथा प्रकृति के अनुसार दूसरी किसी औषधि को मिला देना चाहिये, अर्थात् गुलाब की कली का, सोनामुखी ( सनाय) का तथा एक वा डेढ़ औंस ऐपसम साल्ट का एक जुलाब देना चाहिये। १०-यदि ऊपर लिखी दवा से फायदा न हो तो लाइकर पोटास ६० मिनिम, सोराखार १ ड्राम, टिंकचर आफ हायोसाइम २ ड्राम तथा चूनेका पानी ४ औंस, इन सब को मिला कर भाग दिन में चार वार देना चाहिये । ११-पाषाणभेद, धनिया, धमासा, गोखुरू, किरमाला ( अमलतास ) तथा गुड़, इन सब को प्रत्येक को आधे २ तोले लेकर तथा सब को एक सेर पानी में भिगो कर छान लेना चाहिये, पीछे दिन में दो तीन वार में वह पानी पिला देना चाहिये। १२-चावलों का धोवन एक सेर, केसू के फूल एक तोला, दाख (मुनक्का) एक तोला तथा त्रिफले का चूर्ण एक तोला, इन सब औषधों को चावलों के धोवन में दो घण्टे तक भिगो कर तथा कुचल कर उन के पानी को छान लेना चाहिये और वही जल सबेरे और शाम को पिलाना चाहिये। १३-बहुफली ३ ड्राम और सोडा ३० ग्रेन, इन दोनों औषधियों को मिला कर तीन पुड़ियां बना लेनी चाहिये तथा दिन में तीन बार (सबेरे, दुपहर और शाम को ) एक एक पुड़िया देनी चाहिये। विशेष वक्तव्य-ऊपर लिखी हुई अंग्रेजी तथा देशी दवा यदि मिल सके तो थोड़े दिनों तक उस का सेवन कर उस के फल को देखना चाहिये परन्तु उस के साथ साधारण खुराक को खाना चाहिये । मद्य, मिर्चे, मसाला, हींग और तेल आदि गर्म पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये। देशी वैद्यक शास्त्र ने यद्यपि सुजाख में दूध के पीने का निषेध किया है परन्तु डाक्टर त्रिभुवनदास की सम्मति है कि-इस रोग में दूध के सेवन से किसी प्रकार की हानि नहीं होती है, इस परस्पर विरोध का विचार कर इस विषय में परीक्षा (जाँच) की गई तो विदित (मालूम) हुआ कि दूध के सेवन से यद्यपि और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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