________________
५५०
जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
कुछ बिगाड़ तो नहीं होता है परन्तु सुजाख के मिटने में देरी लगती है (सुजाख बहुत दिनों में अच्छा होता है)।
जब सुजाख के कठिन चिह्न मन्द (कम) पड़ जावें तब नीचे लिखी हुई दवा तथा पिचकारी का उपयोग करना चाहिये, परन्तु तब तक उक्त दवाइयों को काम में नहीं लाना चाहिये। __ बहुत से अज्ञान (मूर्ख ) वैद्य सुजाख का प्रारंभ होते ही पिचकारी लगवाते हैं, सो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से लाभ होने के बदले प्रायः हानि ही देखी जाती है इस लिये एक वा दो हफ्ते के बाद जब सुजाख हलका पड़ जावे अर्थात् जलन कम हो जावे और रसी थोड़ी सफेद तथा पतली आने लगे तब पेट में लेने के लिये (खाने के लिये) तथा पिचकारी के लगाने के लिये नीचे लिखी हुई दवाइयों को काम में लाना चाहिये।
ऊपर कहे हुए कार्य के लिये-कोपेवा, कबाबचीनी और चन्दन का तेल, ये मुख्य पदार्थ हैं, इस लिये इन को उपयोग में लाना चाहिये।
१४-आइल कोपेवा ४ ड्राम, आइल क्युबब २ ड्राम, म्युसिलेज अकासिया २ औंस, आइलसिन्नेमान १५ बूंद और पानी १५ औंस, पहिले पानी के सिवाय चारों औषधियों को मिला कर पीछे उस में पानी मिलावें तथा दिन में तीन वार खाना खाने के पीछे एक एक औंस पीवें, इस दवा के थोड़े दिनों तक पीने से रसी (मवाद) का आना बंद हो जावेगा।
१५-यदि ऊपर लिखी हुई दवा से रसी का आना बंद न हो तो कबावचीनी की बूकी (बुरकी) से३ तोला तथा कोपेवा वालसाम ४० से ६० मिनिम, इन दोनों को एकत्र करके ( मिला कर) उस के दो भाग कर लेने चाहियें तथा एक भाग सबेरे और एक भाग शाम को घृत, मिश्री, अथवा शहद के साथ चाटना चाहिये।
अथवा केवल ( अकेली) कबावचीनी की बूकी (बुरकी अथवा चूर्ण) दो दुअन्नीभर दिन में तीन वार घृत तथा मिश्री के साथ खाने से भी फायदा होता है।
इस के सिवाय-चन्दन का तेल भी सुजाख पर बहुत अच्छा असर करता है तथा वह अंग्रेजी वालसाम कोपेवा के समान गुणकारी (फायदेमन्द) समझा जाता है।
१६-लीकर पोटास ३ ड्राम, सन्दल (चन्दन ) का तेल ३ ड्राम, टिंकचर आरेनशियाई १ औंस तथा पानी १६ औंस, पहिले पानी के सिवाय शेष तीनों औषधियों को मिला कर पीछे पानी को मिलाना चाहिये तथा दिन में तीन वार खाना खाने के पीछे इसे एक एक औंस पीना चाहिये।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com