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चतुर्थ अध्याय ।
५२३ ( नरम ) चाँदी का विष केवल उक्त पिण्ड तक ही पहुँचता है अर्थात् सब शरीर में नहीं फैलता है।
चिकित्सा-१-बद के प्रारंभ में रोगी को चलने फिरने का निषेध करना चाहिये, अर्थात् उसे अधिक चलने फिरने नहीं देना चाहिये, गर्म पानी का सेक करना चाहिये तथा उस पर बेलाडोना, आयोडीन टिंकचर, अथवा लीनीमेंट लगाना चाहिये तथा आवश्यकता के अनुसार जोंके लगानी चाहिये।
२-नीच के पत्तों को बफाकर बांधना चाहिये, अथवा सिन्दूर तथा रेवतचीनी का शीरा बांधना चाहिये।
३-चूने और गुड़ को पानी में बांट कर ( पीसकर ) उस का लेप करना चाहिये। ___४-जब बद पकनेपर आवे तब उसपर वारंवार अलसी की पोल्टिस बांधनी चाहिये, पीछे उस को शस्त्र से फोड़ देना चाहिये, अथवा उस के शिखर (ऊपरी भाग) को कास्टिक पोटास लगा कर फोड़ देना चाहिये तथा फूटने के बाद उस के ऊपर मल्हमपट्टी लगानी चाहिये । __५-कभी २ ऐसा भी होता है कि-उस का मोटा तथा गहरा क्षत पड़ जाता है
और उस पर चमड़ी की मोटी कोर लटक जाती है परन्तु उस में दर्द नहीं होता है, जब कभी ऐसा हो तो उस चमड़ी की मोटी कोर को निकाल डालना चाहिये तथा उस पर व्यालोमेल और आयोडोफार्म बुरकाना चाहिये तथा रेड प्रेसी पीटेट का मल्हम लगाना चाहिये अथवा रसकपूर का पानी लगाना चाहिये।
६-कठिन चाँदी के साथ मूढ बद होती है अर्थात् वह न तो पकती है और न वहे अधिक दर्द करती है, वह बद इन ऊपर कहे हुए उपचारों ( उपायों) से अच्छी नहीं हो सकती है किन्तु वह तो उपदंश (गर्मी) के शारीरिक (शरीरसम्बन्धी) उपायों के साथ दूर हो सकती है।
कठिन तथा मृदु चाँदी के भेदों का वर्णन । संख्या । मृदु चाँदी के भेद। संख्या । कठिन चाँदी के भेद । १ मलीन मैथुन करने के पीछे एक दो १मलीन मैथुन करने के पीछे एक से दिन में अथवा एक सप्ताह (हफ्ते) लेकर तीन अठवाड़ों में दीख में दीखती है।
पड़ती है। २ प्रारंभ में छोल अथवा चीरा होकर २ प्रारम्भ में फुनसी होकर फिर वह पीछे क्षत का रूप धारण करता है। फूट कर क्षत (घाव) पड़ जाता है।
१-क्योंकि चलने फिरने से बद की गांठ जोर पकड़ती है और जोर पकड़ लेनेपर अर्थात् कठिन रूप धारण कर लेनेपर उस का अच्छा होना दुस्तर हो जाता है ।। २-अलसी की पोल्टिस के बांधने से वह अच्छी तरह से पक जाती है और खूब पक जाने के बाद शस्त्र आदि से फोड़ देने से उस का भीतरी सब मवाद (रसी) निकल जाता है तथा दर्द कम पड़ जाता है ।
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