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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
९-इन ऊपर कही हुई दवाइयों में से चाहे किसी दवा का प्रयोग किया जावे परन्तु उस के साथ में रोगी को शक्तिप्रद ( ताकत देनेवाली) दवा अवश्य देते रहना चाहिये कि जिस ले उस की शक्ति क्षीण ( नष्ट) न होने पावे, शक्ति बनी रहने के लिये टाटूट आफ आयन बहुत अच्छी दवा है, इस लिये पांच से दश ग्रेनतक इस दवा को पानी के साथ दिनभर में तीन बार देते रहना चाहिये।
१०-यदि चमड़ी का भाग सड़ जावे तो प्रथम उसपर पोल्टिस बाँध कर सड़े हुए भाग को अलग कर देना चाहिये तथा उस के अलग हो जाने के पीछे ऊपर लिखी हुई दवाइयों में से किसी एक दवा को लगाना चाहिये।
११-यदि इन दवाइयों में से किसी दवा से फायदा न हो तो रेड प्रेसीपीटेट का मल्हम, कार्बोलिक तेल, अथवा वोएसिक मल्हम लगाना चाहिये।
बद-टांकी के होने से एकतरफ अथवा दोनोंतरफ जाँघ के मूल में जो मोटी गांठ हो जाती है उस को बद कहते हैं, नरम टांकी के साथ जो बद होती है वह बहुधा पकेविना नहीं रहती है अर्थात् वह अवश्य पकती है तथा उस का दर्द भी बहुत होता है परन्तु कभी २ ऐसा भी होता है कि एक ही गांठ न होकर कई गांठें होकर पक जाती हैं तथा जांघ के मूल में गहा पड़ जाता है जिस से रोगी बहुत दिनोंतक चल फिर नहीं सकता है।
यह भी स्मरण रहे कि-इन्द्रिय के ऊपर जिस तरफ चाँदी होती है उसी तरफ बद भी होती है और बीच में अथवा दोनों तरफ यदि चाँदी होती है तो दोनों तरफ बद उठती है और वह पक जाती है तथा उस के साथ ज्वर आदि चिह्न भी मालूम होते हैं।
पहिले कह चुके हैं कि कठिन चाँदी के साथ जो बद होती है वह प्रायः पकती नहीं है, इसी कारण उस में दर्द भी अधिक नहीं होता है ।
चाँदी के साथ में जो बद होती है उस के होने का कारण यही है कि बद उस क्षत (चाँदी) का ही विष है और टांकी के होने का मूल कारण प्रत्येक व्यक्ति का विशिष्ट विष है, यह विष शोषण नलियों के मार्ग से वंक्षण ( अंड कोश) के भीतरी पिण्ड में पहुँचता है, उस विष के पहुंचने से उस भागका शोथ हो जाता है और वही शोथ बड़ी गांठ के रूप में हो जाता है ।
कठिन चांदी का विष रुधिर के मार्ग से सब शरीर में फैल जाता है परन्तु मृदु
१-क्योंकि शक्ति के नष्ट हो जाने से इस रोग का वेग बढ़ता है ॥ २-क्योंकि पोल्टिस को लगाकर सड़े हुए मांस के अलग किये विना दवा का उपयोग करने से उस (दवा) का असर भीतरतक नहीं पहुँच सकता है किन्तु उस सड़े हुए मांस के बीच में आ जाने से दवा का असर अन्दर पहुँचने से रुक जाता है ॥ ३-प्रत्येक व्यक्ति का विशिष्ट विष अर्थात् जुदी २ तासीरवाले हर एक पुरुष वा स्त्री का विशेष प्रकार का विष अर्थात् चेपी रोग को उत्पन्न करनेवाला एक खास प्रकार का जहरीला असर ।।
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