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चतुर्थ अध्याय।
५२१ चाँदी के सिवाय दूसरी जगह न लगने पावे, यदि नाइट्रिक एसिड के लगाने से जलन मालूम पड़े तो उसपर पानी की धारा देनी (डालनी) चाहिये, ऐसा करने से विशेष एसिड ( आवश्यकता से अधिक एसिड का भाग) जल जावेगा और जलन बंद हो जावेगी।
२-यदि समयपर नाइट्रिक एसिड न मिले तो उस के बदले (ऐवज ) में सिल्वर तथा पोटास कास्टिक लगाना चाहिये।
३-इस रीति से जिस जगह चाँदी हुई हो उस जगह को जला कर उस के ऊपर एक दिन पोल्टिस लगानी चाहिये कि जिस से जला हुआ भाग अलग होकर नीचे लाल जमीन दीखने लगे।
४-यदि किसी जगह सफेद भाग हो और वह अच्छा न होता हो तो पहिले थोड़ा सा मोरथोथा लगाना चाहिये, पीछे उसके अंकुरों के आने के लिये इस नीचे लिखे हुए पानी में कपड़े को भिगा कर लगाना चाहिये-जिंकसलफास दश ग्रेन, टिंकचर लवांडर कम्पाऊंड दो ड्राम तथा पानी चार औंस, इन सब को मिला लेना चाहिये, यदि इस से आराम न हो तो ब्लाकवाश में कपडे की चींट (धज्जी वा लीरी) को भिगा कर लपेटना चाहिये।
५-इस प्रकार की चाँदियों को अच्छा करने के लिये आयडोफार्म अति उत्तम दवा है, उस को चाँदीपर बुरका कर ऊपर से पट्टी को लपेट कर बांध देना चाहिये।
६-यदि चाँदी सुपारी के छिद्र में अथवा मणी के बीच में हो तो उस के बीच में हमेशा कपड़ा रखना चाहिये, क्योंकि ऐसा न करने से उस में से निकलती हुई रसी के दूसरी जगह लग जाने से विशेष टांकी के पड़ जाने की सम्भावना रहती है। ___७-यदि फूल चमड़ी से ढका हुआ हो और भीतर की चाँदी न दीखती हो तो वोएसीक लोशन के पानी की चमड़ी और फूल के बीच में पिचकारी लगानी चाहिये।
८-यदि प्रसरयुक्त चाँदी हो तो उसपर भी कास्टिक लगा कर पीछे उसपर पोल्टिस बांधनी चाहिये कि जिस से उस के ऊपर का मृत (मरा हुआ अर्थात् निर्जीव) मांस अलग हो जावे ।
१-क्योंकि चाँदी के सिवाय दूसरी जगहपर एसिड के गिरने से वह जगह भी जल जावेगी ।। २-अर्थात् पोल्टिस के द्वारा वह जली हुई चमड़ी पोल्टिस के साथ ही उतर जावेगी तथा उस के उतरने से नीचे लाल जमीन दीखने लगेगी। ३-ऐसा करने से अन्दर से घाव भर जाता है तथा निर्जीव चमडीअलग हो जाती है।४-कि जिस से चाँदी के स्थान का स्पर्श दूसरे स्थान से न होने पावे ॥ ५-क्योंकि काष्टिक के लगाने से चाँदी का स्थान जल जावेगा, पीछे उसपर पोल्टिस बाँधने से वह जला हुआ भाग अर्थात् निर्जीव मांस अलग हो जावेगा और नीचे से साफ जगह निकल आवेगी ।
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