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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
३ दबाकर देखने से तलभाग में नरम ३ क्षत प्रारंभ से ही तलभाग में कठिन लगती है।
__ होता है। ४ क्षत की कोर तथा सपाटी बैठी हुई ४ क्षत छोटा होता है, कोर बाहर को
होती है, उसपर मृत मांस का थर निकलती हुई होती है तथा सपाटी होता है और उस में से तीव्र और लाल होती है और उस में से पतली गाढ़ा पीप निकलता है।
रसी निकलती है। ५ बहुधा एक में बहुत से क्षत होते हैं। ५ बहुधा एक ही क्षत होता है। ६ क्षत का चेप उसी मनुष्य के शरीर- ६ क्षत का चेप उसी मनुष्य के शरीरपर दूसरी जिस २ जगह लग जाता पर दूसरी जिस २ जगह लग जाता है वहां २ वैसा ही मृदु क्षत पड़ है वहां २ दूसरा कठिन क्षत नहीं जाता है।
होता है। ७ एक अथवा दोनों वक्षणों में बद ७ एक तरफ अथवा दोनों तरफ बद होती हैं तथा वह प्रायः पकती है। होती है उस में दर्द कम होता है
और वह प्रायः पकती नहीं है । ८ इस क्षत में विशेष पीड़ा और शोथ ८ इस क्षत में पीड़ा तथा शोथ नहीं
होता है तथा प्रसर (फैलाव) करने- होता है तथा इस में प्रसर (फैलाव) - वाले और सड़नेवाले क्षत का उद्भव करनेवाला और सड़नेवाला क्षत (उत्पत्ति) होता है और उस के क्वचित् ( कहीं २) ही पैदा होता सूखने में विलम्ब लगता है।
है और वह जल्दी ही सूख जाता है। ९ इस क्षत का असर स्थानिक है अर्थात् ९इस क्षत के होने के पीछे थोड़े समय
उसी जगहपर इस का असर होता है में इस का दूसरा चिह्न शरीर के किन्तु बद के स्थान के सिवाय शरीर- ऊपर मालूम होने लगता है। पर दूसरी जगह असर नहीं होता है।
इस रीति से दोनों प्रकार की चाँदियों के भिन्न २ चिह्न ऊपर के कोष्ठ से मालूम हो सकते हैं और इन चिह्नों से बहुधा इन दोनों का निश्चय होना सुगम है परन्तु कभी २ जब क्षत की दुर्दशा होने के पीछे ये चिह्न देखने में आते हैं तब उन का निर्णय होना कठिन पड़ जाता है। .. कभी २ किसी दशा में शिश्न के ऊपर कठिन और नरम दोनों प्रकार की
चाँदियां साथ में ही होती हैं और कभी २ ऐसा होता है कि द्वितीय चिह्न के समय के आने से पूर्व चाँदी के भेद का निश्चय नहीं हो सकता है ।
१-मृदु क्षत अर्थात् नरम चाँदी ॥ २-वंक्षणो अर्थात् अण्डकोशों में अथवा उन के अति समीपवर्ती भागों में ॥ ३-कठिन क्षत अर्थात् तीक्ष्ण चाँदी ॥ ४-अर्थात् ऊपर लिखे हुए पृथक २ चिन्हों से दोनों प्रकार की चाँदी सहज में ही पहिचान ली जाती है ।। ५ क्योंकि क्षत के विगड़ जाने के बाद मिश्रितवत् हो जाने के कारण चिह्नों का ठीक पता नहीं लगता है । ६-शिश्न अर्थात् सुखेन्द्रिय (लिङ्ग)॥ ७-अर्थात् यह नहीं मालूम होता है कि यह कौन से प्रकार की चाँदी है।
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