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चतुर्थ अध्याय ।
४६३ तैयार कर थोड़े दिन तक लगातार दोनों समय पीना चाहिये, ऐसा करने से दोष का पाचन और शमन (शान्ति ) हो कर ज्वर उतर जाता है।
सन्निपातज्वर का वर्णन। . तीनों दोषों के एक साथ कुपित होने को सन्निपात वा त्रिदोष कहते हैं, यह दशा प्रायः सब रोगों की अन्तिम (आखिरी) अवस्था ( हालत में हुआ करती है, यह दशा ज्वर में जब होती है तब उस ज्वर को सन्निपातज्वर कहते हैं, किसी में एक दोष की प्रबलता तथा दो दोषों की न्यूनता से तथा किसी में दो दोषों की प्रबलता और एक दोष की न्यूनता से इस ज्वर के वैद्यकशास्त्र में एकोल्बणादि ५२ भेद दिखलाये हैं तथा इस के तेरह दूसरे नाम भी रख कर इस का वर्णन किया है। ___ यह निश्चय ही समझना चाहिये कि-यह सन्निपात मौत के बिना नहीं होता है चाहे मनुष्य बोलता चालता तथा खाता पीता ही क्यों न हो। __यह भी स्मरण रखना चाहिये कि-सन्निपात को निदान और कालज्ञान को पूर्णतया जाननेवाला अनुभवी वैद्य ही पहिचान सकता है, किन्तु मूर्ख वैद्यों को तो अन्तदशा तक में भी इस का पहिचानना कठिन है, हां यह निश्चय है किसन्निपात के वा त्रिदोष के साधारण लक्षणों को विद्वान् वैद्य तथा डाक्टर लोग सहज में जान सकते हैं।
इस के सिवाय यह भी देखा गया है कि-रात दिन के अभ्यासी अपठित (विना पढ़े हुए) भी बहुत से जन मृत्यु के चिह्नों को प्रायः अनेक समयों में बतला देते हैं, तात्पर्य सिर्फ यही है कि-"जो जामें निशदिन रहत, सो तामें परवीन" अर्थात् जिस का जिस विषय में रात दिन का अभ्यास होता है वह उस विषय में प्रायः प्रवीण हो जाता है, परन्तु यह बात तो अनुभव से सिद्ध हो चुकी है कि-सन्निपात ज्वर के जो १३ भेद कहे गये हैं उन के बतलाने में तो अच्छे २ चतुर वैद्यों को भी पूरा २ विचार करना पड़ता है अर्थात् यह अमुक प्रकार का सन्निपात है इस बात का बतलाना उन को भी महा कठिन पड़ जाता है।
१-अर्थात् अपक ( कच्चे) दोष का पाचन और बढ़े हुए दोष का शमन होकर ज्वर उतर जाता है ॥ २-तात्पर्य यह है कि-सन्निपात की दशा में दोषों का सँभालना अति कठिन क्या किन्तु असाध्य सा हो जाता है, बस वही रोग की वा यों समझिये कि प्राणी की अन्तिम (आखिरी) अवस्था होती है, अर्थात् इस संसार से विदा होने का समय समीप ही आजाता है। ३-उन सब ५२ भेदों का तथा तेरह नावों का वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देख लेना चाहिये, यहां पर अनावश्यक समझकर उन का वर्णन नहीं किया गया है ॥ ४-तात्पर्य यह है कि तीनों दोषों के लक्षणों को देख कर सन्निपात की सत्ता का जान लेना योग्य वैद्यों के लिये कुछ कठिन बात नहीं है परन्तु सन्निपात के निदान (मूलकारण ) तथा दोषों के अंशांशिभाव का निश्चय करना पूर्ण अनुभवी वैद्य का ही कार्य है।
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