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चतुर्थ अध्याय ।
तेरहवां प्रकरण
औषध प्रयोग ।
औषधों का संग्रह |
जंगल में उत्पन्न हुई जो अनेक वनस्पतियां बाज़ार में बिकती हैं तथा अनेक दवायें जो धातुओं के संसर्ग से तथा उन की भस्म से बनती हैं इन्हीं सबों का नाम औषध ( दवा ) है, परन्तु इस ग्रन्थ में जो २ वनस्पतियां संग्रहीत की गई हैं अथवा जिन २ औषधों का संग्रह किया गया है वे सब साधारण हैं, क्योंकि जिस औषध के बनाने में बहुतज्ञान, चतुराई, समय और धन की आवश्यकता है उस औषध का शास्त्रोक्त ( शास्त्र में कहा हुआ ) विधान और रस आदि विद्याशाला के सिवाय अन्यत्र यथावस्थित ( ठीक २) बन सकना असम्भव है, इस लिये जिन औषधों को साधारण वैद्य तथा गृहस्थ खुद बना सके अथवा बाज़ार से मंगा कर उपयोग में ला सके उन्हीं औषधों का संक्षेप से यहां संग्रह किया गया है तथा कुछ साधारण अंग्रेज़ी औषधों के भी वर्त्ता प्रायः सर्वत्र किया जाता है ।
नुसखे लिखे हैं कि जिन का
इन में से प्रथम कुछ शास्त्रोक्त औषधों का विधान लिखते हैं:
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अरिष्ट और आसव - पानी काढ़ा अथवा पतले प्रवाही पदार्थ में औषध को डाल कर उसे मिट्टी के वर्तन में भर के कपड़मिट्टी से उस वर्तन का मुँह बन्द कर एक या दो पखवाड़े तक रक्खा रहने दे, जब उस में खमीर पैदा हो जावे तब उसे काम में लावे, औषधों को उबाले विना रहने देने से आसव तैयार होता है और उबाल कर तथा दूसरे औषधों को पीछे से डाल कर रख छोड़ते हैं तब अरिष्ट तैयार होता है ।
जहां औषधों का वजन न लिखा हो वहां इस परिमाण से लेना चाहिये कि -- अरिष्ट के लिये उबालने की दवा ५ सेर, शहद ६। सेर, गुड़ १२ ॥ सेर और पानी ३२ सेरें, इसी प्रकार आसव के लिये चूर्ण १| सेर लेना चाहिये तथा शेष पदार्थ ऊपर लिखे अनुसार लेने चाहियें ।
१- अर्थात् वनस्पतियों और धातुओं से चिकित्सार्थ बने हुए पदार्थों का समावेश औषध नाम में हो जता है । २ - 'विद्याशाला, शब्द से यहां वह स्थान समझना चाहिये कि जहां वैद्यकविद्या का नियमानुसार पठन पाठन होता हो तथा उसी के नियम के अनुसार सब ओषधियां ठीक २ तैयार की जाती हों ॥ ३ - जैसे कुमार्यासव, द्राक्षासव, आदि ॥ ४-जैसे अमृतारिष्ट आदि || ५ - परन्तु कई आचार्यों का यह कथन है कि -अरिष्ट में डालने के लिये प्रक्षेपवस्तु ४० रुपये भर, शहद २०० रुपये भर, गुड़ ४०० रुपये भर तथा द्रव पदार्थ १०२४ रुपये भर होना चाहिये ॥
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