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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
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इन दोनों के पीने की मात्रा ४ तोला है' |
मद्य - इसे यत्र पर चढ़ा कर अर्क टपकाते हैं, उसे मद्य ( स्पिरिट ) कहते हैं । अर्क - औषधों को एक दिन भिगाकर यन्त्र पर चढ़ा के भभका खींचते हैं, उसे कहते हैं ।
अवलेह - जिस वस्तु का अवलेह बनाना हो उस का स्वरस लेना चाहिये, अथवा काढ़ा बना कर उस को छान लेना चाहिये, पीछे उस पानी को धीमी आंच से गाढ़ा पड़ने देना चाहिये, फिर उस में शहद गुड़ शक्कर अथवा मिश्री तथा दूसरी दवायें भी मिला देना चाहिये, इस की मात्रा आधे तोले से एक तोले तक है।
कल्क - गीली वनस्पति को शिलापर पीस कर अथवा सूखी ओपधि को पानी डाल कर पीस कर लुगदी कर लेनी चाहिये, इस की मात्रा एक तोले की है।
कीथ - एक तोले ओषधि में सोलह तोले पानी डाल कर उसे मिट्टी वा कलई के पात्र ( वर्त्तन ) में उकालना ( उबालना ) चाहिये, जब अष्टमांश (आठवां भाग ) शेष रहे तब उसे छान लेना चाहिये, प्रायः उकालने की ओषधि का वजन एक समय के लिये ४ तोले है, यदि क्वाथ को थोड़ा सा नरम करना हो तो चौथा हिस्सा पानी रखना चहिये, एक बार उकाल कर छानने के पीछे जो कूचा रह जावे उस को दूसरी बार ( फिर भी शाम को ) उकाला जावे तथा छान कर उपयोग में लाया जावे उसे पर काथ ( दूसरी उकाली ) कहते हैं, परन्तु शाम को उकाले हुए काथ का बासा कूचा दूसरे दिन उपयोग में नहीं लाना चाहिये, हां प्रातःकाल का कूचा उसी दिन शाम को उपयोग में लाने में कोई नहीं है ।
निर्बल रोगी को क्वाथ का अधिक पानी नहीं देना चाहिये ।
२ - यह पूर्ण अवस्थावाले पुरुष के लिये मात्रा है, किन्तु न्यूनावस्थावाले के लिये मात्रा कम करनी पड़ती है, जिस का वर्णन आगे किया जावेगा, ( इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिये ॥ २यत्र कई प्रकार के होते हैं, उन का वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देख लेना चाहिये ।। ३- दयाधर्मवालों के लिये अर्क पीने योग्य अर्थात् भक्ष्य पदार्थ हैं परन्तु अरिष्ट और आसव अभक्ष्य है, क्योंकि जो बाईस प्रकार के अभक्ष्य के पदार्थों के खाने से बचता है उसे ही पूरा दयाधने का पालनेवाला समझना चाहिये ॥ ४ - जो वस्तु चाटी जावे उसे अवलेह कहते हैं ।। ५- तात्पर्य यह है कि यदि गीली वनस्पति हो तो उस का स्वरस लेना चाहिये परन्तु यदि सूखी ओषधि हो तो उसका काढ़ा बना लेना चाहिये ॥ ६ - इस को मुसलमान वैद्य ( हकीम ) लऊक कहते हैं तथा संस्कृत में इस का नाम कल्क है ॥ ७- इस को उकाली भी कहते हैं ॥ ८- तात्पर्य यह है कि ओषधि से १६ गुना जल डाला जाता है परन्तु यह जल का परिमाण २ तोले से लेकर ४ तोले पर्यन्त औषध के लिये समझना चाहिये, चार तोले से उपरान्त कुडव पर्यन्त औप में आठ गुना जल डालना चाहिये और कुड़व से लेकर प्रस्थ (सेर) पर्यन्त औषध में चौगुना ही जल डालना चाहिये ||
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