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चतुर्थ अध्याय।
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१-पतला दस्त-अपची से अथवा संग्रहणी के रोग से पतले दस्त होते हैं,
यदि मल में खुराक का कच्चा भाग दीखे तो समझना चाहिये कि-अन्न का पाचन ठीक रीतिसे नहीं होता है, आतों में पित्तके बढ़ने से भी मल पतला और नरम आता है, अतीसार और हैजे में दस्त पानी के समान पतला आता है, यदि क्षय रोग में विनाकारण ही पतला दस्त आवे तो समझ लेना चाहिये कि रोगी नहीं बचेगा। २-करड़ा दस्त-नित्य की अपेक्षा यदि करड़ा दस्त आवे तो कबज़ियत की निशानी समझनी चाहिये, हरस के रोगी को सदा सख्त दस्त आता है तथा उस में प्रायः सफर का भाग छिल जाने से उस में से खून आता है, पेट में अथवा सफरे में वादी के रहने से सदा दस्त की कब्जी रहती है, यदि कलेजे में पित्त की क्रिया ठीक रीति से न होवे तथा आवश्यकता के अनुसार पित्तकी उत्पत्ति न हो अथवा मल को आगे ढकेलने के लिये आँतों में तंग और ढीले होने की यथावश्यक (जितनी चाहिये उतनी)
शक्ति न होवे तो दस्त करड़ा आता है। ३-खूनवाला दस्त-यदि दस्तके साथ में मिला हुआ खून आता हो
अथवा आम गिरती हो तो समझ लेना चाहिये कि मरोड़ा हो गया है, हरस रोग में तथा रक्तपित्त रोग में खून दस्त से अलग गिरता है, अर्थात्
दस्त के पहिले वा पीछे धार होकर गिरता है। ४-अधिक खून व पीपवाला दस्त-यदि दस्त के मार्ग से खून बहुत गिरे तथा पीप एक दम से आने लगे तो समझ लेना चाहिये कि कलेजा
पककर आँतों में फूटा है। ५-मांस के घोवन के समान दस्त-यदि दस्त धोये हुए मांस के पानी के
समान आवे तथा उस में चाहे कुछ खून भी हो वा न हो परन्तु काले छोतों के समान हो और उस में बहुत दुर्गन्ध हो तो समझना चाहिये कि
आंतें सड़ने लगी हैं। ६-सफेद दस्त-यदि दस्त का रंग सफेद हो तो समझना चाहिये कि
कलेजे में से पित्त यथावश्यक (चाहिये जितना) आँतों में नहीं आता है, प्रायः कामला पित्ताशय तथा कलेजे के रोग में ऐसा दस्त आता है। ७-सफेद कांजी के समान वा चावलों के घोवन के समान दस्तहैज़े में तथा बड़े (अत्यन्त ) अजीर्ण में दस्त सफेद कांजी के समान
अथवा चावलों के धोवन के समान आता है। ८-काला वा हरा दस्त-यदि काला अथवा हरा दस्त आवे तो समझना
चाहिये कि कलेजे में रोग तथा पित्त का विकार है। १-परन्तु स्मरण रहे कि आँवला गूगुल तथा लोहे से बनी हुई दवाओं के खाने से दस्त काला आता है, इस लिये यदि इन में से कोई कारण हो तो काले दस्त से नहीं डरना चाहिये ।
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