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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
पड़े तो जान लेना चाहिये कि मूत्र में खार और खटास ( आलकेली खार और एसिड ) है |
यह संक्षेप से सूक्ष्मदर्शक यन्त्र के द्वारा मूत्रपरीक्षा कही गई है, इस के विषय में यदि विशेष हाल जानना हो तो डाक्टरी ग्रन्थों से वा डाक्टरों से पूँछ कर जान सकते हैं ।
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मलपरीक्षा - मल से भी रोग की बहुत कुछ परीक्षा हो सकती है, तथा रोग के साध्य वा असाध्य की भी परीक्षा हो सकती है, इस का वर्णन इस प्रकार है:
१ - वायुदोषवाले का मल - फेनवाला, रूखा तथा धुएँके रंग के समान होता है और उस में चौथा भाग पानी के सदृश होता है ।
२- पित्तदोष वाले का मल- हरा, पीला, गन्धवाला, ढीला तथा गर्म होता है । सूखा, कुछ भीगा तथा चिकना
३ - कफदोषवाले का मल- सफेद, कुछ होता है ।
भीगा तथा अन्दर गांठोंवाला
४- वातपित्तदोषवाले का मल-पीला और होता है ।
काला,
५- वातकफदोषवाले का मल-भीगा, काला तथा पपोटेवाला होता है । ६ - पित्तकफदोषवाले का मल-पीला तथा सफेद होता है ।
७- त्रिदोषवाले का मल-सफेद, काला, पीला, ढीला तथा गांठोंवाला होता है । ८-अजीर्णरोगवाले का मल-दुर्गन्धयुक्त और ढीला होता है ।
९- जलोदररोगवाले का मल-बहुत दुर्गन्धयुक्त और सफेद होता है ।
१० - मृत्युसमय को प्राप्त हुए रोगी का मल - बहुत दुर्गन्धयुक्त, लाल, कुछ सफेद, मांस के समान तथा काला होता है ।
यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जिस रोगी का मल पानी में डूब जावे वह रोगी बचता नहीं है ।
इस के अतिरिक्त मलपरीक्षा के विषय में निम्नलिखित बातों का भी जानना अत्यावश्यक है जिन का वर्णन संक्षेप से किया जाता है:
१ - इस शब्द का प्रयोग बहुवचन में होता है अर्थात् अलकलिस वा अलकलिज, इस को फ्रेंच भाषा में अल्कली भी कहते हैं, यह एक प्रकार का खार पदार्थ है, इस शब्द के कोपकारों ने कई अर्थ लिखे हैं, जैसे- पौधे की राख, कढ़ाई में भूनना, वा न भूनना, सोडे की राख, तेजावी सोडा तथा तेजाबी पोटास इत्यादि, इस का रासायनिक स्वरूप यह है कि यह तेजाबी असली चीजों में से है, जैसे- सोडा, पोटास, गोंदविशेष और सोडे की किस्म का एक तेज तेजाब, इस का मुख्य गुण यह है कि यह पानी और अलकोहल ( विष ) में मिल जाता है तथा तेल और चर्बी से मिल कर साबुन को बनाता है और तेजाब से मिलकर नमक को बनाता है या उसे मातदिल कर देता है, एवं बहुत से पौधों की जर्दी ( पीलेपन ) को भूरे रंग की कर देता है और काई वा पौध के लाल रंग को नीला कर देता है |
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