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चतुर्थ अध्याय ।
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तथा चर्बी आदि का भाग मूत्र के साथ जाता है, इन में भी विशेषता यह है कि-खार का भाग अधिक होने से मूत्र फटा हुआ सा, खून का भाग अधिक होने से धूम्रवर्ण, रसी (पीप) का भाग अधिक होने से मैल और गलेपन से युक्त तथा चर्बी का भाग अधिक होने से चिकना और चर्बी के कतरों से युक्त दीख पड़ता है ।
६-मूत्र में खटास का भाग अधिक होने से वह ( मूत्र ) रक्तवर्ण का ( लाल रंग का ) तथा पित्त का भाग अधिक होने से पीत वर्णका ( पीले रंग का) और फेनों से हीन इस यत्र के द्वारा स्पष्टतया ( साफ तौर से ) दीख पड़ता है ।
७- मूत्र में शक्कर के भाग का जाना इस यत्र के द्वारा प्रायः सब ही जान सकते हैं, क्योंकि शक्कर का स्वरूप सब ही को विदित है ।
८- इस यत्र के द्वारा परीक्षा करने से यदि मूत्र - फेनरहित, अतिश्वेत ( बहुत सफेद अर्थात् अण्डे की सफेदी के समान सफेद ), स्निग्ध ( चिकना ), पौष्टिक तत्र से युक्त, आँटे के लस के समान लसदार, पोश्त के तेल के समान स्निग्ध तथा नारियल के गूदे के समान स्निग्ध ( चिकने ) पदार्थ से संघट्ट ( गुथा हुआ ), गाढ़ा तथा रक्त (खून) की से युक्त दीख पड़े तो जान लेना चाहिये कि - मूत्र में प्रकार आल्ब्युमीन का निश्चय हो जानेपर मूत्राशय निश्चय हो सकता है, जैसा कि पहिले लिख चुके हैं ।
कान्ति (चमक ) आल्ब्यूमीन है, इस
के जलन्धर का भी
९- इस यन्त्र के द्वारा देखने पर यदि मूत्र में जलाये हुए पौधे की राख के समान, वा कढ़ाई में भूने हुए पदार्थ के समान कोई पदार्थ दीखे अथवा सोडे की राख सी दीख पड़े अथवा तेज़ाबी सोडा वा तेज़ाबी पोटास दीख
१ - इस का कुछ वर्णन आगे नवीं संख्या में किया जावेगा ॥ २- यह शब्द दो प्रकार का हैजिन में से एक का उच्चारण आल्ब्युम्यन हैं, यह लाटिन तथा फ्रेंच भाषा का शब्द है, इस को फ्रेंच भाषा में अलवस भी कहते हैं, जिस का अर्थ सफेद है, इस शब्द के तीन अर्थ हैं - १ - अण्डे की सफेदी, २- परवरिश करनेवाला मादा जो बहुत से पौधों के बीच के परदे में 'इकठ्ठारहता है परन्तु गर्भ में मिला नहीं रहता है, यह अन्न अर्थात् गेहूँ और इसी किस्म के दूसरे अन्नों में आटे का हिस्सा होता है, पोश्त के दाने में रोगनी ( तेल का ) हिस्सा होता है और नारियल में गूदे - दार हिस्सा होता है, यह रसायन के लिहाज से वही वस्तु है जो कि आल्ब्युमीन है (जिस का अर्थ अभी आगे कहते हैं ), दूसरे शब्द का उच्चारण आल्ब्युमीन है, यह गाढ़ा द्रव तथा विषैला पदार्थ होता है जो कि खास आवश्यक (जरूरी) मादा अण्डे का होता है और लोहू. का पंछा होता है और यह दूसरे हैवानी मादों में पाया जाता है, वह चाहे द्रव हो और चाहे दृढ़ हो इसके सिवाय यह पौधों में भी पाया जाता है, यह पानी में बुलजाता है तथा गर्मी और दूसरी रसायनिक रीतियों से जम जाता है ॥
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