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जैनसम्प्रदायशिक्षा । घाला) विषय है अतः उन सब का वर्णन ग्रन्थ के विस्तार के भय से नहीं लिख सकते हैं, तथापि संक्षेप से कुछ इस परीक्षा के विषय में तथा मूत्र में स्थित अत्यावश्यक कुछ पदार्थों के स्वरूप के विषय में गृहस्थों के लाभ के लिये लिखते हैं:१-पहिले कह चुके हैं कि-नीरोग मनुष्य के मूत्र का रंग ठीक सूखी हुई
घास के रंग के समान होता है, तथा उस में जो खार और खटास आदि पदार्थ यथोचित परिमाण में रहते हैं उन का भी वर्णन कर चुके हैं, इस लिये सूक्ष्मदर्शक यन्त्र के द्वारा मूत्रपरीक्षा करनेपर नीरोग मनुष्य का मूत्र ऊपर लिखे अनुसार ( उक्त रंग से युक्त तथा यथोचित खार आदि के परिमाण से युक्त) ऊपर से स्पष्टतया न दीखने पर भी उक्त यन्त्र से साफ तौर
से दीख जाता है। २-वात, पित्त, कफ, द्विदोष (दो २ मिले हुए दोप) तथा सन्निपात
(त्रिदोप) दोषवाले, एवं अजीर्ण और ज्वर आदि विकारवाले रोगियों का मूत्र पहिले लिखे अनुसार उक्त यन्त्र से ठीक दीख जाता है, जिस से उक्त दोषों वा उक्त विकारों का निश्चय स्पष्टतया हो जाता है। ३-मूत्र में तैल की बूंद के डालने से दूसरी रीति से जो मूत्रपरीक्षा तालाब, हंस, छत्र, चमर और तोरण आदि चिन्हों के द्वारा रोग के साध्यासाध्य. विचार के लिये लिख चुके हैं वे सब चिन्ह स्पष्ट न होने पर भी इस यन्त्र से ठीक दीख जाते हैं अर्थात् इस यत्रके द्वारा उक्त चिन्ह ठीक २ मालूम होकर रोग की साध्यासाध्यपरीक्षा सहज में हो जाती है। ४-पहिले कह चुके हैं कि-डाक्टरों के मत से मूत्र में मुख्यतया दो चीजें हैं-युरिआ और एसिड, तथा इन के सिवाय-नमक, गन्धक का तेज़ाब, चूना, फासफरिक ( फासफर्स) एसिड, मेगनेशिया, पोटास और सोडा, इन सब वस्तुओं का भी थोड़ा २ तत्त्व और बहुत सा भाग पानी का होता है', अतः इस यन्त्र के द्वारा मूत्रपरीक्षा करने पर उक्त पदार्थों का ठीक २ परिमाण प्रतीत होजाता है, यदि न्यूनाधिक परिमाण हो तो पूर्व लिखे अनुसार विकार वा हानि समझ लेनी चाहिये, इन पदार्थों में से गन्धक का तेज़ाब, चूना, पोटास तथा सोडा, इन के स्वरूप को प्रायः मनुष्य जानते ही हैं अतः इस यन्त्र के द्वारा इन के परिमाणादि का निश्चय कर सकते हैं,
शेष आवश्यक पदार्थों का स्वरूप आगे कहा जायगा। ५-इस यन्त्र के द्वारा मूत्र को देखने से यदि उस (मूत्र) के नीचे कुछ जमाव
सा मालूम पड़े तो समझ लेना चाहिये कि-खार, खून, रसी (पीप)
१-इन सब पदार्थों के परिमाण का विवरण पहिले ही लिख चुके हैं ।
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