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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
प्रश्नपरीक्षा। रोगी से कुछ हकीकत के पूछने से भी रोगों की विज्ञता (जानकारी) होती है और ऐसी विज्ञता पहिले लिखी हुई परीक्षाओं से भी नहीं हो सकती है', यद्यपि कई समयों में ऐसा भी होता है कि-रोगी से पूछने से भी रोग का यथार्थ हाल नहीं मालूम होता है और ऐसी दशा में उस के कथन पर विशेष विश्वास भी रखना योग्य नहीं होता है, परन्तु इस से यह नहीं मान लेना चाहिये किरोगी से हकीकत का पूछना ही व्यर्थ है, किन्तु रोगी से पूछ कर उस की सब अगली पिछली हकीकत को तो अवश्य जानना ही चाहिये, क्योंकि पूछने से कभी २ कोई २ नई हकीकत भी निकल आती है, उस से रोग की उत्पत्ति के कारण का पता मिल सकता है और रोग की उत्पत्ति के कारण का अर्थात् निदान का ज्ञान होना वैद्यों के लिये चिकित्सा करने में बहुत ही सहायक है, इस लिये रोगी से वारंवार पूछ २ कर खूब निश्चय कर लेना चाहिये, केवल इतना ही नहीं किन्तु बहुत सी बातों को रोगी के पास रहनेवालों से अथवा सहवासियों से पूछ के निश्चय करना चाहिये, जैसे-यदि रोगी को वमन (उलटी) होता है तो वमन के कारण को पूछ कर उस कारण को बन्द करना चाहिये, ऐसा करने से वमन को बन्द करने की कोई आवश्यकता नहीं रहती है, जैसे यदि पित्त से वमन होता हो तो पित्त को दबाना चाहिये, यदि भजीर्ण से होता हो तो अजीर्ण का इलाज करना चाहिये, तथा यदि होजरी की हरकत से होता हो तो उस ही का इलाज करना चाहिये, तात्पर्य यह है कि-वमन के रोग में वमन के कारण का निश्चय करने के लिये बहुत पूछ ताछ करने की आवश्यकता है, इसी प्रकार से सब रोगों के कारणों का निश्चय सब से प्रथम करना चाहिये, ऐसा न करने से चिकित्सा का कुछ भी फल नहीं होता है, देखो ! यदि बुखार अजीर्ण से आया हो और उस का इलाज दूसरा किया जाये तो वह आराम नहीं हो सकता है, इसलिये पहिले इस का निश्चय करना चाहिये कि बुखार अजीर्ण से हुआ है अथवा और किसी कारण से हुआ है, इस का निश्चय जैसे दूसरे लक्षणों आदि से होता है उसी प्रकार रोगी ने दो तीन दिन पहिले क्या किया था, क्या खाया था, इत्यादि बातों के पूछने से शीघ्र ही निश्चय हो जाता है। ___ बहुत से रोग चिन्ता, भय, क्रोध और कामविकार आदि मनःसम्बन्धी कारणों से भी पैदा होते हैं और शरीर के लक्षणों से उन का ठीक २ ज्ञान नहीं होता है, इसलिये रोगों में हकीकत के पूछने की बहुत ही आवश्यकता है, उदाहरण
१-क्योंकि दूसरी परीक्षाओं से कुछ न कुछ सन्देह रह जाता है परन्तु रोगी से हकीकत पूछ लेने से रोग का ठीक निश्चय हो जाता है ॥ २-सहायक ही नहीं किन्तु यह कहना चाहिये कि-निदान का जानना ही चिकित्सा का मुख्य आधार है ॥ ३-क्योंकि वमन के कारण को वन्द कर देनेसे वमन आप ही वन्द हो जाता है। ४-कारण का निश्चय किये विना केवल चिकित्सा ही निष्फल हो जाती हो यही नहीं किन्तु ऐसी चिकित्सा दूसरे रोगों का कारण बन जाती है।
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