________________
३७८
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
होकर पाचनशक्ति मन्द पड़ती है, इस मन्दाग्नि का यदि शीघ्र ही इलाज न किया जावे तो इस (मन्दाग्नि) से क्रम से अनेक रोग पैदा होते हैं, जैसे देखो:
१-मन्दाग्नि से अजीर्ण होता है, अजीर्ण से दस्त होते हैं, दस्तों से मोड़ा होता है, मरोड़े से संग्रहणी होती है, संग्रहणी से मस्सा (हरस) होता है, मस्सा से पेट का दर्द अफरा और गुल्म (गोले) का रोग होता है।
२-शर्द गर्मी (जुखाम)-यद्यपि यह एक छोटा सा रोग है तथा तीन चार दिनतक रह कर आप से ही मिट जाता है परन्तु किसी २ समय जब यह शरीर में जकड़ जाता है तो बड़े २ भयंकर रोगों का कारण बन जाता है, जैसेइस में खाने पीने की हिफाज़त न रहने से दोष बढ़ कर खांसी होती है और कफ बढ़ता है, उस से फेफसे में हरकत पहुंचकर आखिरकार क्षय रोग के चिह्न प्रकट होते हैं तथा पीनसरोग भी जुखाम से ही होता है।
३-अजीर्ण-अजीर्ण भी एक ऐसा साधारण रोग है कि वह मनुष्यों को प्रायः बना रहता है तथा वह आप ही सहज और साधारण उपाय से मिट भी जाता है, हां यह बात अवश्य है कि जहांतक शरीर में ताकत रहती है वहांतक तो इस की अधिक हरकत नहीं मालूम पड़ती है परन्तु नाताकत मनुष्य के लिये साधारण भी अजीर्ण बड़े २ रोगों का कारण बन जाता है, जैसे देखो ! अंजीर्ण से मरोड़ा होता है, मरोड़े से संग्रहणी जैसे असाध्य रोग की उत्पत्ति होती है तथा हैजे और मरी को बुलानेवाला भी अजीर्ण ही है।
इस में बड़ी भयंकरता यह है कि यदि इस का इलाज न किया जावे तो यह ( अजीर्ण) जीर्ण रूप पकड़ता है और शरीर में सदा के लिये घर बना लेता है ।
अजीर्ण से प्रायः बहुत से रोग होते हैं जिन में से सुख्य रोग ये हैं-कृमि, बुखार, चूंक, दस्त की कब्जी आदि ।
४-बुखार-बुखार से तिल्ली, जीर्णज्वर, शोथ, अरुचि, कास, श्वास, चमन और अतिसार आदि।
५-कृमि-कृमि रोग से हिचकी, हृदय का रोग, हिष्टीरिया, शिर का दर्द, छींक, दस्त, वमन और गुमड़े आदि रोग होते हैं।
६-धातुविकार-धातुविकार से असाध्य क्षय रोग होता है, यदि उस का उपाय न किया जावे तो उस से मगज़ की वायु, विचारवायु अथवा भ्रम हो जाता है, बुद्धि का नाश हो जाता है और मनुष्य पागल के समान बन जाता है।
७-खांसी-यद्यपि यह एक साधारण रोग है परन्तु उस का उपाय न करने से उस की वृद्धि होकर राजयक्ष्मा हो जाता है।
१-इस को अंग्रेजी में डिसपेप्सिया कहते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com