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चतुर्थ अध्याय ।
३७७ देखो ! शरीर में जब गर्मी के बढ़ने से वायु का जोर बढ़ जाता है और रोगी तथा दूसरे भी सब लोग वादी की पुकार करते हैं (सब कहते हैं कि वादी है वादी है) उस की चिकित्सा के लिये यदि कोई योग्य वैद्य आकर गर्मी की निवृत्ति के द्वारा वायु की निवृत्ति करता है तब तो ठीक ही है, परन्तु जब कोई मूख वा चिकित्सा करने के लिये आता है तो वह भी शर्दी से वादी की उत्पत्ति समझ कर गर्म दवा देता है जिस से महाहानि होती है, खूबी यह है कि यदि कदाचित् कोई बुद्धिमान् वैद्य यह कहे कि यह रोग गर्मी के द्वारा उत्पन्न हुई वादी से है इस लिये यह गर्म दवा से नहीं मिटेगा किन्तु ठंढी दवा से ही मिटेगा, तो उस रोगी के घरवाले सब ही स्त्री पुरुष वैद्य को मूर्ख ठहरा देते हैं और उस की बतलाई हुई दवा को मञ्जूर नहीं करते हैं किन्तु मनमानी गर्म दवाइयां देते हैं जिन से गर्मी अधिक बढ़ कर रोग को असाध्य कर देती है, जैसेपित्तस बंधी भयंकर गर्मी से उत्पन्न हुए पानीझरे में वृद्ध रण्डायें और मूर्ख वैद्य सौ २ गों को कुल्हिये ( कुल्हड़े ) में छौंक २ कर दिलाते हैं जिस से रोगी प्रायः पर ही जाता है, हां सौ में से शायद कोई एक दीर्घायु ही बचता है, यदि बच भी जाता है तो उस को वह अत्यन्त गर्मी जन्मभर तक सताती रहती है, इसी प्रकार गर्मी के द्वारा जब कभी धातु का विकार होकर पुरुषत्व का नाश होता है, उश, और सुजाख से अथवा भय और चिन्ता से बहुत से आदमियों का मगज कर जाता है, विचारवायु हो जाता है, पागलपन हो जाता है तब ऐसे रोगों पर भी अज्ञान लोग और ज्ञान से हीन ऊँट वैद्य आंखें बन्द कर एकदम गर्म दवा दिये जाते हैं जिस से वीमारी का घटना तो दूर रहा उलटी वायु अधिक बढ़ जाती है जिस से रोगी के और भी खराबी उत्पन्न होती है, क्योंकि इस प्रकार के रोग प्रायः मगज़ के खाली पड़ जाने से तथा धातु के नाश से होते हैं, इस लिये इन रोगों में तो जब मगज और धातु सुधरे तब ही वायु मिटकर लाभ हो सकता है, इसी लिये मगज़ को पुष्ट करनेवाला, तरावट लानेवाला और शीतल इलाज इन रोगों में बतलाया गया है, परन्तु मूर्ख वैद्य इन बातों को कहां से जानें ? ___ अमान वैद्य बहुत जुलाब के अयोग्य शरीरवाले को बहुत जुलाब दे देते हैं जिस्म से दस्त और मरोड़े का रोग हो जाता है, आम तथा खून टूट पड़ता है और कई वार आंतें काम न देकर अशक्त हो जाती हैं, जिस से रोगी मर जाता है।
___एक रोग दूसरे रोग का कारण । जैसे बहुत से रोग आहार विहार के विरुद्ध वर्ताव से स्वतन्त्रतया होते हैं उस प्रकार दूसरे रोगों से भी अन्य रोग पैदा होते हैं, जैसे बहुत खाने से अथवा अपनी प्रकृति के प्रतिकूल अथवा बहुत गर्म वा बहुत ठंढे पदार्थ के खाने से जठराग्नि बिगड़ती है वैसे ही अधिक विषय सेवन से भी शरीर का सत्त्व कम
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