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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
प्रदर, टाईफाइड तथा टाईफस नामक ज्वर (शील ओरी), हैजा, व्युयोनिक प्लेग ( अग्निरोहणी) और विस्फोटक आदि, इन के सिवाय और भी खाज दाद आदि रोग चेप से होते हैं।
१४-ठंढ-शरीर की गर्मी जब कम होती है तब उस को ठंढ कहते हैं, बहुत ठंढ से अर्थात् शर्दी से ज्वर, मरोड़ा, चूंक, मूत्रपिण्डका शोथ, सनि वात अर्थात् गठिया, मधुप्रमेह, हृदयरोग, फेफसे का शोथ, दम, क्षय और सांसी आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
१५-गर्मी–शरीर की स्वाभाविक गर्मी से जब अधिक गर्मी बढ़ जाती है तब ज्वर, वातरक, यकृत् , रक्तपित्त, गर्मी की खांसी, पिंडलियों का ऐठना और अतीसार आदि रोग होते हैं, कठिन धूप की गर्मी से मगज की बीमारी, कठिन ज्वर, हैजा, शीतला और मरोड़ा आदि रोग उत्पन्न होते हैं, एवं शरीर पर फुर सियें और फफोले आदि चमड़ी की भी व्याधियां हो जाती हैं, जिस प्रकार विस्फोटक आदि दुष्टरोग दुष्टस्पर्श से उत्पन्न हुए गर्मी के विष से होते हैं उसी प्रकार गर्म पदार्थों के खाने से बढ़ी हुई गर्मी से भी इस प्रकार के रोग होते हैं।
१६-मन के विकार-मन के विकारों से भी बहुत से रोग होते हैं, जैसेदेखो ! बहुत क्रोध से ज्वर और वातरक्त आदि बीमारियां हो जाती हैं, बहुत भय से मूर्छा, कामला, चूंक, गुल्म, दस्त और अजीर्ण आदि रोग होते हैं, बहुत चिन्ता से अजीर्ण, कामला, मधुप्रमेह, क्षय और रक्तपित्त आदि रोग होते हैं।
१७-अकस्मात्-गिर जाने, कुचल जाने, डूब जाने और विष खाजाने आदि अनेक अकस्मात् कारणों से भी अनेक रोग होते हैं।
१८-दवा-यद्यपि दवा रोगों को मिटाती है अथवा मिटाने में सहायता करती है परन्तु युक्ति के विना अज्ञानता से ली हुई वा दी हुई दवा से कुछ भी लाभ नहीं होता है, अथवा इस प्रकार से ली हुई दवा एक रोग को दा कर दूसरे को उत्पन्न कर देती है तथा भूल से दी हुई दवा से मनुष्य मर भी जाता है, इस लिये इन सब बातों को अपनी गफलत में अथवा अकस्मात्वर्ग में गनते हैं, परन्तु लेभग्गू नीम हकीम और मूर्ख वैद्य अपने अल्पज्ञान से अथवा लोभ से अथवा रोगी पर पूरी दया न रखने के कारण बेपर्वाही से चिकित्सा क ने से सैकड़ों रोगों के कारणरूप हो जाते हैं, देखो ! हज़ारों मनुष्य इन लेभग्गुओं के हाथ से मारे जाते हैं, हज़ारों मनुष्य इन के हाथ से कष्ट पाते हैं, इन बातों का कुछ दृष्टान्तों के द्वारा खुलासा वर्णन करते हैं:___ शरीर में वायु के बढ़ जाने का मुख्य कारण ठंढ अर्थात् शर्दी ही है परन्तु कभी २ शरीर में बहुत गर्मी के बढ़ जाने से भी वायु जोर किया करती है, अब १-कहीं से कोई तथा कहीं से कोई बात ले उडनेवाले को लेभग्गू कहते हैं ।
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