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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
३-जहां एकवचन और बहुवचन में शब्दों में भेद नहीं होता वहां शब्दों के आने
गण, जाति, लोग, जन, आदि शब्दों को जोड़कर बहुवचन बनाया करते हैं, जैसे-ग्रहगण, पण्डित लोग, मूढ जन, इत्यादि ॥
वचनोंका सम्बन्ध नित्य कारकों के साथ है इसलिये कारकों का विषय संक्षेप से दिखाते हैं-हिन्दी में आंठ कारक माने जाते हैं—कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन ॥
कारकों का वर्णन। १-कर्ता उसे कहते हैं जो क्रिया को करे, उस का कोई चिन्ह नहीं है, परंतु सकर्मक क्रिया के कर्ता के आगे अपूर्णभूत को छोड़कर शेष भूतों में 'ने' का चिह्न आता है, जैसे-लड़का पढ़ता है, पण्डित पढ़ाता था, परन्तु पूर्णभूत आदि में
गुरु ने पढ़ाया था, इत्यादि ॥ २-कर्म उसे कहते हैं जिसमें क्रिया का फल रहे, इस का चिह्न 'को' है. जैसे
मोहन को बुलाओ, पुस्तक को पढ़ो, इत्यादि ॥ ३-करण उसे कहते हैं जिस के द्वारा कर्ता किसी कार्य को सिद्ध करे, इस का
चिह्न 'से' है, जैसे-चाकू से कलम बनाई, इत्यादि । ४-सम्प्रदान उसे कहते हैं जिस के लिये कर्ता किसी कार्य को करे, इस के चिह्न 'को' के लिये हैं, जैसे-मुझ को पोथी दो, लड़के के लिये खिलौना लाओ,
इत्यादि ॥
५-अपादान उसे कहते हैं, कि जहां से क्रिया का विभाग हो, इस का चिह्न 'से'
है, जैसे-वृक्ष से फल गिरा, घर से निकला, इत्यादि ॥ ६-सम्बन्ध उसे कहते हैं-जिस से किसी का कोई सम्बन्ध प्रतीत हो, इस का
चिह्न का, की, के, है, जैसे राजा का घोडा, उस का घर, इत्यादि ॥ ७-अधिकरण उसे कहते हैं-कि कर्ता और कर्म के द्वारा जहां पर कार्य का करना
पाया जावे, उसका चिह्न में, पर, है, जैसे-आसन पर बैठो, फूल में सुगन्धि
है, चटाई पर सोओ, इत्यादि ॥ ८-सम्बोधन उसे कहते हैं जिस से कोई किसी को पुकारकर या चिताकर
अपने सम्मुख करे, इस के चिह्न हे, हो, अरे, रे, इत्यादि हैं ॥ जैसे-हे भाई, अरे नौकर, अरे रामा, अय लड़के, इत्यादि ॥
अव्ययों का विशेष वर्णन । प्रथम कह चुके हैं कि-अव्यय उन्हें कहते हैं जिनमें लिंग, वचन और कारक के कारण कुछ विकार नहीं होता है, अव्ययों के छः भेद हैं क्रियाविशेषण, बन्धबोधक, उपसर्ग, संयोजक, विभाजक और विस्मयादिबोधक ॥
१-कोई लोग सम्बन्ध और सम्बोधन को कारक न मानकर शेष छः ही कारकोंको मानते हैं ।
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