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प्रथम अध्याय।
लिंग-विवरण। 1-जिन के द्वारा सजीव वा निर्जीव पदार्थ के पुरुषवाचक वा स्त्रीवाचक होने की पहिचान होती है उसे लिंग कहते हैं, लिंग भाषा में दो प्रकार के माने गये हैं- पुलिंग और स्त्रीलिङ्ग ॥ (१) पुलिंग-पुरुषबोधक शब्द को कहते हैं, जैसे-मनुष्य, घोड़ा, कागज़,
घर, इत्यादि । (२) स्त्रीलिंग-स्त्रीबोधक शब्द को कहते हैं, जैसे-स्त्री, कलम, घोड़ी,
मेज़, कुर्सी, इत्यादि ॥ २-प्राणिवाचक शब्दों का लिंग उन के जोड़े के अनुसार लोकव्यवहार से ही __सिद्व है, जैसे—पुरुप, स्त्री, घोड़ा, घोड़ी, बैल, गाय, इत्यादि ॥ ३-जिन अप्राणिवाचक शब्दों के अन्त में अकार वा आकार रहता है और जिन
का आदिवही अक्षर त नहीं रहता, वे शब्द प्रायः पुलिंग होते हैं, जैसेछाता, लोटा, घोड़ा, कागज, घर, इत्यादि । (दीवार, कलम, स्लेट पेन्सिल, दाल आदि शब्दों को छोड़कर )॥ ४-जिन अग्राणिवाचक शब्दों के अन्तमें म, ई, वा त हो, वे सब स्त्रीलिंग होते हैं, जैर-कलम, चिट्टी, लकड़ी, दबात, जात, आदि (घी, दही, पानी, खेत,
पर्वत, आदि शब्दोंको छोड़कर)॥ ५-जिन भाववाचक शब्दों के अन्त में आव, त्व, पन, और पा हो, वे सब पुलिंग
होन हैं, जैसे—-चढ़ाव, मिलाव, मनुष्यत्व, लड़कपन, बुढ़ापा, आदि ॥ ६-जिन भाववाचक शब्दों के अन्त में आई, ता, वट, हट हो, वे सब स्त्रीलिंग
होते हैं, जैसे---चतुराई, उत्तमता, सजावट, चिकनाहट, आदि ॥ ७-समास में अन्तिम शब्द के अनुसार लिंग होता है, जैसे-पाठशाला, पृः वीपति, राजकन्या, गोपीनाथ, इत्यादि ॥
वचन-वर्णन । :-वर न व्याकरण में संख्या को कहते हैं, इस के दो भेद हैं-एकवचन और बहुवचन ॥ (1) जिस शब्द से एक पदार्थ का बोध हो उसे एकवचन कहते हैं, जैसे
लड़का पढ़ता है, वृक्ष हिलता है, घोड़ा दौड़ता है, इत्यादि ॥ (२) जिस शब्द से एक से अधिक पदार्थों का बोध होता है उसे बहुवचन
कहते हैं, जैसे-लड़के पढ़ते हैं, घोड़े दौडते हैं, इत्यादि ॥ २-कुछ शब्द का कारक में एकवचन में तथा बहुवचन में समान ही रहते हैं,
जैस-घर, जल, वन, वृक्ष, बन्धु, बान्धव, इत्यादि ।
१-लिंग से स्त्रीलिंग बनाने की रीतियों का वर्णन यहां विशेष आवश्यक न जानकर नहीं किया गया है, इस का विषय देखना हो तो दूसरे व्याकरणोंको देखो ।।
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