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प्रथम अध्याय ।
१-क्रियाविशेषण अव्यय वह है-जिस से क्रिया का विशेष, काल और रीति
आदि का बोध हो, इस के चार भेद हैं-कालवाचक, स्थानवाचक, भाववाचक और परिमाणवाचक ॥ (१) कालवाचक-समय बतलानेवाले को कहते हैं, जैसे-अब, तब, जब,
कल, फिर, सदा, शाम, प्रातः, परसों, पश्चात्, तुरन्त, सर्वदा, शीघ्र,
कब, एकवार, वारंवार, इत्यादि ॥ (२) स्थानवाचक-स्थान बतलानेवाले को कहते हैं, जैसे-यहां, जहां, ___वहां, कहां, तहां, इधर, उधर, समीप, दूर, इत्यादि । (३) भाववाचक उन को कहते हैं-जो भाव को प्रकट करें, जैसे-अचानक.
अर्थात् , केवल, तथापि, वृथा, सचमुच, नहीं, मत, मानो, हां, स्वयम् ,
झटपट, ठीक, इत्यादि ॥ (४) परिमाणवाचक-परिमाण बतलानेवालों को कहते हैं, जैसे-अत्यन्त,
अधिक, कुछ, प्रायः, इत्यादि । २-सम्बन्धबोधक अव्यय उन्हें कहते हैं-जो वाक्य के एक शब्द का दूसरे शब्दके
साथ सम्बन्ध बतलाते हैं, जैसे-आगे, पीछे, संग, साथ, भीतर, बदले, तुल्य, नीचे, ऊपर, बीच, इत्यादि ॥ ३-उपसर्गों का केवल का प्रयोग नहीं होता है, ये किसी नकिसी के साथ ही में रहते हैं, संस्कृत में जो-ग्र आदि उपसर्ग हैं वे ही हिन्दी में समझने चाहिये, वे उपसर्ग ये हैं-प्र, परा, अप, सम् , अनु, अव, निस् , निर्, दुस् ,
दुर, वि, आ, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत् , प्रति, परि, अभि, उप ॥ ४-संयोजक अव्यय उन्हें कहते हैं-जो अव्यय पदों वाक्यों वा वाक्यखंडों में आते हैं और अन्वय का संयोग करते हैं, जैसे-और, यदि, अथ, कि, तो, यथा,
एवम् , भी, पुनः, फिर, इत्यादि ॥ ५-विभाजक अव्यय उन्हें कहते हैं जो अव्यय पदों वाक्यों वाक्यखण्डों के मध्य में आते हैं और अन्वय का विभाग करते हैं, जैसे-अथवा, परन्तु, चाहे,
क्या, किन्तु, वा, जो, इत्यादि ॥ ६-विस्मयादिबोधक अव्यय उन्हें कहते हैं जिनसे-अन्तःकरण का कुछ भाव या
दशा प्रकाशित होती है, जैसे-आह, हहह, ओहो, हाय, धन्य, छीछी, फिस, धिक, दूर, इत्यादि ॥
यह प्रथमाध्याय का शब्दविचार नामक चौथा प्रकरण समाप्त हुआ ॥
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