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जैनसम्प्रदायशिक्षा। जाता है तथा इस गुटिका को देकर बालक को बलात्कारसे सुलाना तो न सुलाने के ही समान है, इसलिये माता का यह कार्य तो बालक के साथ शत्रुता रखने के तुल्य होता है, बालक को सुलाने का सच्चा उपाय तो यही है कि-सोने के प्रथम बालक से पूरी शारीरिक कसरत कराना चाहिये, ऐसा करने से बालक को स्वयमेव उत्तम निद्रा आ जावेगी, इसलिये निद्रा के लिये बालगुटिका के देने की रीति को विलकुल ही बन्द कर देना चाहिये । २०-आँख–जब बालक सो कर उठे तब कुछ देर के पीछे उस की आंखों को ठंढे जल से धोना चाहिये, आंखों के मैल आदि को खूब धोकर आंखों को साफ कर देना चाहिये, ठंढे पानी से हमेशा धोने से आंखों का तेज बढता है, ठंढक रहती है तथा आंख की गर्मी कम हो जाती है, इत्यादि बहुत से लाभ आंखों को ठंढे पानी से धोने से होते हैं, परन्तु आंखों को धोये विना बसी ही रहने देने से नुकसान होता है, आंखों में हमेशा काजल अथवा ज्योति को बढ़ानेवाला अन्य कोई अञ्जन आंजते (लगाते) रहना चाहिये, क्योंकि सा करने से आंखें दुखनी नहीं आती हैं और तेज भी बढ़ता है । आंख दुखनी आना एक प्रकार का चेपी रोग है, इस लिये यदि किसी की आंखें दुखती हों तो उस के पास बालक को नहीं जाने देना चाहिये, यदि बालक की आंख दुखनी आवे तो उस का शीघ्र ही यथायोग्य उपाय करना चाहिये, क्योंकि उस में प्रमाद (गफलत) करने से आंख को बहुत हानि पहुँचती है।
१-क्योंकि नशेके जोर से जो निद्रा आती है वह स्वाभाविक निद्रा का फल नहीं देसकती है ।। २-क्योंकि शारीरिक थकावट के बाद निद्रा खूब आया करती है ॥ ३-सोकर उठने के बाद शीघ्र ही आंखों को धो देने से सदी गमों होकर आंखें दुखनी आजाती हैं ॥ ४-चेपी रोग उसे कहते हैं, जो कि रोगी के स्पर्श करनेवाले तथा रोगी के पास में रहनेवाले पुरुष के भी वायु के द्वारा उड़ कर लगजाता है, यह (चेपी) रोग बड़ा भयंकर होता है, इस लिये माता पिता को चाहिये कि चेपी रोग से अपनी तथा अपने बालकों की सदा रक्षा करते रहें, यह भी जान लेना चाहिये कि केवल आंखों का दुखनी आना ही चेपी रोग नहीं है किन्तु चेपीरोग बहुत से हैं, जैसे ओरी ( शीतला का भेद), अछबड़ा ( आकड़ा काका), शीतला (चेचक), गालपचोरिया (गालमें होनेवाला रोगविशेष), खुलखुलिया, गलनुआ ( गले में होनेवाला एक रोग,) दाद, आंखों का दुखना, टाइफस ज्वर (वरविशेष), कोलेरा (विषूचिका वा हैजा), मोतीझरा, पानीझरा (ये दोनों राजपूताने में प्रायः होते हैं ) इत्यादि, इन रोगों में जब कोई रोग कहीं प्रचलित हो तो वहां बालक को लेकर नहीं रहना चाहिये किन्तु जब वह रोग मिट जावे तव वहां बालक को ले जाना चाहेये, तथा यदि कोई पुरुष इन रोगों में से किसी रोग से ग्रस्त हो तो उसके बिलकुल आराम हो जाने के पीछे बालक को उसके पास जाने देना चाहिये, तत्पर्य यही है कि-चेपी रोगों से अपनी और अपने बालकों की बड़ी सावधानी के साथ रक्षा करनी चाहिये ।
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