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तृतीय अध्याय ।
जब बालक का शरीर बिलकुल तनदुरुस्त हो तब उस के टीका लगवाना चाहिये, टीका लगवाने के बाद नौ दस दिन में दाने भर जाते हैं और सूजन आ जाती है
और पीड़ा भी होने लगती है, उस के बाद एक दो दिन में आराम होना शुरू होज ता है, इस समयमें उस के आराम होने के लिये बालक को औषध देने का कुछ काम नहीं है; हां यदि टीका लगाने का स्थान खिंचता हो और खिंचने से अधिक दुःख मालूम होता हो तो उस पर केवल घी लगा देना चाहिये, क्योंचि घी के लगाने से चेप निकल कर गिर जाते हैं, दाने फूटने के बाद वारीक राख से उसे पोंछना भी ठीक है, परन्तु दानों को नोच कर नहीं उखाड़ना चाहिये क्योंकि नोच कर उखाड़ देने से लाभ नहीं होता है और फिर पक जाने का भी भय रहता है, यदि बालक दानों को नोचने लगे तो उस के हाथ पर कपड़ा लपेट देना चाहिये अर्थात् उस चेप (पपड़ी) को नोच कर नहीं उखाइना चाहिये किन्तु उसे अपने आप ही गिरने देना चाहिये। १९ बालगुटिका-बालक को बालगुटिका देने की रीति बहुत हानिकारक है,
च हे प्रत्यक्ष में इस से कुछ लाभ भी मालूम पड़े परन्तु परिणाम में तो हानि ही पहुँचती है, यह हमेशा देने से तो एक प्रकार से खुराक के समान हो जती है तथा व्यसनी के व्यसन के समान यह भी एक प्रकार से व्यसनवत् ही हो जाती है, क्योंकि जब तक उस का नशा रहता है तब तक तो बालक को निद्रा आती है और वह ठीक रहता है परन्तु नशा उतरने के बाद फिर ज्यां का त्यों रहता है, नशा करने से स्वाभाविक नींद के समान अच्छी नींद भी नहीं आती है, इस के सिवाय इस बात की टीक जांच करली गई है कि-बालगुटिका में नाना प्रकार की वस्तुयें पड़ती हैं किन्तु उन में भी अफीम तो मुख्य होती है, उस गुटिका को पानी वा माता के दूध में मिला के बलात्कार बालक के हाथ पैर पकड़ के उसे पिला देते हैं, यद्यपि उस गुटिका के पीने के समय बालक अत्यन्त रोता है तथापि उस के रोनेपर निर्दय माता के कुछ भी दया नहीं आती है, इस गुटिका के देनेकी रीति प्रायः एक दूसरी के देख कर स्त्रियों में चल जाती है, यह गुटिका भी एक प्रकार के व्यसन के समान बालक को दुबला, निर्बल और पीला कर देती है तथा इस से बालक के हाथ पैर रस्सीके समान पतले और पेट मटकी के समान बड़ा हो
- यांकि राख से पोंछने से दाने जल्दी खुश्क हो जाते हैं। २-कपडा बांध देने से बालक दानों को नोच नहीं सकेगा॥ ३-यह बालगुटिका बच्चोंको खिलाने के लिये एक प्रकार की गोती है जिस में अफीम आदि कई प्रकार के ह निकारक पदार्थ डालकर वह बनाई जाती है-मृर स्त्रियां बालकों को सुलाने के लिये इस गोली को बालकों को खिला देती हैं कि बलक सो जाय और वे मुख से अपना सब कार्य करती रहें ॥ ४-क्योंकि स्त्रियों में मूर्खता तो होती ही है क दूसरी को देख कर व्यवहार करने लगती है ॥ ५-क्योंकि इस में अफीम आदि कई विषेले पदार्थ डाले जाते हैं।
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