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जैनसम्प्रदायशिक्षा। तेल की बूंदें डालनी चाहियें, यदि कान बहता हो तो समुद्रफेन को तेल में उवाल कर उस की बूंदें कान में डालनी चाहिये, कान में छिद्र (छेद) कराने की रीति नुकसान करती है, क्योंकि कान में छिद्र करके अलंकार (आभूषण, जेवर) पहनने से अनेक प्रकार के नुकसान हो जाते हैं, इस लिये यह रीति ठीक नहीं है, कान को सलाई आदि से भी करोदना नहीं चाहिये किन्तु उस (कान) के मैल को अपने आप ही गिरने देना चाहिये क्योंकि कान के कगे
दने से वह कभी २ पक जाता है और उस में पीड़ा होने लगती है। १८-शीतला रोग से संरक्षा-शीतला निकलने से कभी २ बालक अन्धे, लले, काने और बहिरे हो जाते हैं तथा उन के तमाम शरीर पर दाग पड़ जाते हैं तथा दागों के पड़ने से चेहरा भी बिगड़ जाता है इत्यादि अनेक खरावियां उत्पन्न हो जाती हैं, केवल इतना ही नहीं किन्तु कभी २ इस से बालक का मरण भी हो जाता है, सत्य तो यह है कि बालक के लिये इर के समान और कोई बड़ा भय नहीं है, यह रोग चेपी भी है इसलिये तेस समय यह रोग प्रचलित हो उस समय बालक को रोगवाली जगह पर नहीं ले जाना चाहिये, यदि वालक के टीका न लगवाया हो तो इस समय शीघ्र ही लगवा देना चाहिये, क्योंकि टीका लगवा देने से ऊपर कहीं हुई खरादियों के उत्पन्न होने का भय नहीं रहता है, यदि दालक के दो वार टीका लगवा दिया जावे तो शीतला निकलती भी नहीं है और यदि कदाचित् निकलती भी है तो उस की प्रबलता (जोर) बिलकुल घट जाती है, इस लिये प्राम छोटी अवस्था में एक वार टीका लगवा देना चाहिये पीछे सात वा आठ पर्प की अवस्था में एक वार फिर दुवारा लगवा देना चाहिये, किन्तु प्रथम छोटी अवस्था में एक वार टीका लगवा देने के बाद यदि सात सात वर्ष के पाछे दो तीन वार फिर लगवा दिया जावे तो और भी अधिक लाभ होता है। टीका लगवाने के समय इस बात का पूरा ख़याल रखना चाहिये कि-टीका लगाने के लिये जिस बालक का चेप लिया जावे वह बालक गुमड़े तथा कार आदि रोगवाला नहीं होना चाहिये, किन्तु वह बालक नीरोग और दृढ़ बन्धानयुक्त होना चाहिये, क्योंकि नीरोग बालक का चेप लेने से उस बालक को फायदा पहुँचता है और रोगी बालक का चेप लेने से बालक को शीघ्रही उसी प्रकार का रोग होजाता है।
१-पाठकों ने देखा वा सुना होगा कि अनेक दुष्ट गहने के लोभ से छोटे बच्चों को वहा कर ले जाते हैं तथा उन का जेवर हरण कर बच्चों को मार तक डालते हैं ।। २-चेपी अथ त् वायु के द्वारा उड़कर लगनेवाला ॥ ३-छोटी अवस्थामें जितनी जल्द हो सके टीका लगवा देना चाहिये-अर्थात् जिस बालक को कोई रोग न हो तथा पुष्ट पुष्ट हो तो जन्म के १५ दिन के पीछे और तीन महीने के भीतर टीका लगवा देना उचित है, परन्तु दुर्वल और रोगी बालक के जब तक दॉत न निकल आवें तब तक टीका नहीं लगवाना चाहिये, यह का स्मरण रखना चाहिये कि-टीका लगवाने का सब से अच्छा समय जाडे की ऋतु हैं।
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