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________________ तृतीय अध्याय । ११९ सत्य तो यह है कि-बालक के जीवन और मरण का सब आधार तथा उस को अच्छे मार्ग पर चला कर बड़ा करना आदि सब कुछ माता पर ही निर्भर है, इसलिये माता को चाहिये कि-बालक को शारीरिक मानसिक और नीति के नियमों के अनुसार चला कर बड़ा करे अर्थात् उसका पालन करे। ____ परन्तु अत्यन्त शोक के साथ लिखना पड़ता है कि इस समय इस आयावर्त्त देश में उक्त नियमोंको भी मातायें बिलकुल नहीं जानती हैं और उक्त नियमों के न जानने से वे नियम विरुद्ध मनमानी रीति पर चला कर बालक का पालन पोषण करती हैं, इसीका फल वर्तमान में यह देखा जाता है कि-सहसों बालक असमय में हो मृत्युके आधीन हो जाते हैं और जो बेचारे अपने पुण्यके योग से मृत्युके ग्रास से बचभी जाते हैं तो उन के शरीर के सब बन्धन निर्बल रहते हैं, उन की आकृति फीकी सुम्त और निस्तेज रहती है, उन में शारीरिक मानसिक और आत्मिक वल बिलकुल नहीं होता है। खो! यह स्वाभाविक (कुदरती) नियम है कि-संसार में अपना और दूसरों का जीवन सफल करने के लिये अच्छे प्राणी की आवश्यकता होती है, इसलिये यदि सम्पूर्ण प्रजा की उन्नति करना हो तो सन्तान को अच्छा प्राणी बनाना चाहिये, परन्तु बड़े ही अफ़सोस की बात है कि-इस विषय में वर्तमान में अत्यन्त ही असावधानता ( लापरवाही) देखी जाती है। हम देखते हैं कि घोड़ा और बैल आदि पशुओं के सन्तान को बलिए; चालाक; तेज और अच्छे लक्षणों से युक्त बनाने के लिये तो अनेक उपाय तन मन धन से किये जाते हैं; परन्तु अत्यन्त शोक का विषय है कि इस संसार में जो मनुष्य जानि मुख्यतया सुख और सन्तोष की देनेवाली है तथा जिसके सुधरने से सम्पूर्ण देश के कल्याण की सम्भावना और आशा है उस के सुधार पर कुछ भी ध्यान नह दिया जाता है। पाठकगण इस विषय को अच्छे प्रकार से जान सकते हैं और इतिहापोंके द्वारा जानते भी होंगे कि-जिन देशों और जिन जातियोंमें सन्तान की बाल्यावस्था पर ठीक ध्यान दिया जाता है तथा नियमानुसार उसका पालन पोषण कर उसको सन्मार्ग पर चलाया जाता है उन देशों और उन जातियों में प्रायः सन्तान अधम दशा में न रह कर उच्च दशाको प्राप्त हो जाता है अर्थात् शारीरिक मानसिक और आस्तिक आदि बलों से परिपूर्ण होता है, उदाहरण के लिये इंगलेंड आदि देशों को और अंग्रेज तथा पारसी आदि जातियों में देख सकते हैं कि उन की सन्तति प्रायः दुव्यसनों से रहित तथा सुशिक्षित होती है और बल बुद्धि आदि सब गुणों से युक्त होती है, क्योंकि-इन लोगों में प्रायः बहुत ही कम मूर्ख निर्गुणी और शारी -इसी लिये पिता की अपेक्षा माता का दर्जा बड़ा माना गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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