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(७१) अर्थात् आषाढ़ पूर्णिमा को ( गृहिअज्ञात याने द्रव्य क्षेत्र काल भाव से स्थापना ) पर्युषण साधु करे यह उत्सर्गमार्ग है, शेष कालको पर्युषण करनेवालों का अपवादमार्ग है, ऐसा श्रीनिशीथचूर्णि के दशमाउद्देशा का वचन से प्राषाढ़ पूर्णिमा को ही लोचादि कृत्यविशिष्ट पर्युषणा करने योग्य होगी । इस कथन से ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने सांवत्सरिकप्रतिक्रमण केशलुंचनादि कृत्यविशिष्ट पर्युषण करने योग्य कदापि सिद्ध नहीं हो सकती है । क्योंकि आपके उक्त उपाध्यायों ने श्रीनिशीथचूर्णि का उपर्युक्त पाठ अधूरा लिखा है । देखिये श्रीजिनदास महत्तराचार्य महाराज ने श्रीनिशीथचूर्णि में इस तरह उक्त पाठ लिखा है कि___ आसाढ़पुण्णिमाए पज्जोसवेंति एस उस्सग्गो, सेसकालं पज्जोसवेत्ताणं सव्वो अववातो, अववातेवि २० सवीसतिरात १ मासतो परेण अतिकामेउं ण वद्दति २० सवीसतिराते १ मासे पुण्णे जति वासखेत्तं ण लम्भति तो रुख्खहेतुवि पज्जोसवेयव्वं ।
भावार्थ-आषाढ़ पूणिमा को [गृहिअज्ञात याने द्रव्य क्षेत्र काल भाव से स्थापना] पर्युषण साधु करे, यह उत्सर्ग मार्ग है । रहने योग्य क्षेत्र नहीं मिलने से पाँच पाँच दिनों की वृद्धि से शेष कालको पर्युषण करनेवाले साधुओं का सब अपवाद मार्ग हैं, अपवादमार्ग में भी २० रात्रिसहित १ मास से पर अतिक्रमण करना नहीं वर्तता हैं याने ५० वें दिन की रात्रि को सांवत्सरिक प्रतिक्रमण केशलुंचनादि कृत्ययुक्त पर्युषण किये विना उलंघनी नहीं कल्पती है । २० रात्रिसहित १ मास अर्थात् ५० दिन पूर्ण
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