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(७०) करके पश्चात् कार्तिक पूर्णिमा पर्यंत १०० दिन चतुर्मासी के शेष स्थिति करके अवश्य रहे । और चंद्रवर्ष में ५० दिने भाद्रपद सुदी ५मी को गृहिज्ञात पर्युषणपर्व करके पश्चात् कार्तिक पूर्णिमा पर्यंत ७० दिन चतुर्मासी के शेष स्थिति करके अवश्य रहे ।
श्रीजिनदास महत्तराचार्य महाराज ने श्रीनिशीथचूर्णि में [अभिवढियमि वीसा ] इस नियुक्ति वचन की व्याख्या लिखी है कि-अभिवढियवरिसे २० वीसतिराते मते गिहिणातं करेंति " इत्यादि तथा श्रीकल्पसूत्रटीकाओं में"अभिवर्द्धितवर्षे दिनविंशत्या पर्युषितव्यमित्युच्यते तत्सिद्धांतटिप्पनानुसारेण ।" इत्यादि श्रीवृद्धपूर्वाचार्य महाराजों ने जैनसिद्धांतटिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में आषाढ़ चतुर्मासी से २० दिने श्रावण शुक्ल ५ मी को गृहिज्ञात याने सांवत्सरिक कृत्ययुक्त श्रीपर्युषणपर्व करने लिखे हैं और जैनटिप्पने के अभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० दिने दूसरे श्रावण शुक्ल ४ को वा प्रथम भाद्रपद शुक्ल ४ को ५० दिने श्रीपर्युषणपर्व करना संगत बताया है तो आपके उक्त उपाध्यायों ने अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने गृहिज्ञात पर्युषण को गृहिज्ञातमात्रा लिख कर उसके स्थान में ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषण करने लिखे हैं, सो उपर्युक्त सूत्र-नियुक्ति-चूर्णि-टीका श्रादि पाठों से प्रत्यक्ष विरुद्ध हैं । वास्ते संगत नहीं माने जायँगे । फिर आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि___ आसाढ़पुगिणमाए पज्जोसविंति एस उस्सग्गो सेसकालं पज्जोसविताणं अववाश्रोत्ति, श्रीनिशीथचूर्णि-दशमोदेशक-वचनादाऽऽषाढ़पूर्णिमायामेव लोचादिकृत्यविशिष्टा कर्त्तव्या स्यात् ।
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