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( ५४ ) सूर्यचार से सूर्यमास ६० नहीं होते हैं, किंतु एकयुग में दो अधिकमास गिनती में नहीं ऐसा मानने से ५८ मास गिनती में रहते हैं । और शास्त्रकारों ने तो एक युग की गिनती में सूर्यचार से सूर्यमास ६० उनके चंद्रमास ६२ माने हैं । श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति चंद्रपज्ञप्तिसूत्र की टीका में लिखा है कि
सूर्यसंवत्सरसत्कत्रिंशन्मासाऽतिक्रमे एकोऽधिकमासो युगे च सूर्यमासाः षष्ठिस्ततो भूयोऽपि सूर्यसंवत्सरसत्कत्रिंशन्मासाऽतिक्रमे द्वितीयोऽधिकमासो भवति ।
भावार्थ-सूर्यसंवत्सर संबंधी ३० मास वीतने पर ३१ वाँ एक चंद्रमास अधिक हो एक युग में सूर्यचार से सूर्यमास ६० होते हैं, इसी लिये फिर भी सूर्यसंवत्सर संबंधी ३० मास बीतने पर ६२ वाँ दुसरा चंद्रमास अधिक होता है । श्रीचंद्रपज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र की टीकाओं में लिखा है कि___ यस्मिन् संवत्सरे अधिकमासः संभवेत् त्रयोदश चंद्रमासा भवंति सोऽभिवर्द्धितसंवत्सरः उक्तं च तेरसय चंदमासा वासो अभिवढियो य नायव्वो। ___ अर्थ-जिस संवत्सर में अधिकमास हो उस वर्ष में १३ मास होते हैं, वह अभिवर्द्धित संवत्सर है । कहा है कि एक पूर्णिमा को १ चंद्रमास, ऐसे १३ चंद्रमास वाला अभिवर्द्धितवर्ष जानना । और श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र में भी लिखा है कि-"गोयमा अभिपढिय संवच्छरस्स छवीसाइं पव्वाइं।" यह श्रीतीर्थकर गणधर महाराजों ने अधिकमास को गिनती में लेके अभिववित
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