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( ५३ ) दऽहोरात्रिप्रमाणः चंद्रमास एकोनविंशदिनानि द्वात्रिंशच्च द्वाषष्ठिभागा दिनस्य ततो गणितसंभावनया सूर्यसंवत्सरसत्कत्रिंशन्मासाऽतिक्रमे एकश्चंद्रमासोऽधिको लभ्यते इत्यादि । ___अर्थ-अधिक मास किस तरह होता है, जिस अधिकमास से अभिवर्द्धित संवत्सर होता है अथवा कितने काल से अधिक मास होता है वह बताते हैं कि यहाँ पर बारह बारह मास के तीन चन्द्रसंवत्सर और तेरह तेरह मास के दो अभिवद्धित संवत्सर, इन पाँच संवत्सरों का एक युग हो, ३६६ दिनरात्रि का एक सूर्यसंवत्सर होता है । ऐसे सूर्य संवत्सर की अपेक्षा से एक युग में विचारा जाय तो अन्यूनाधिक याने संपूर्ण पाँच वर्ष होते हैं । और सूर्यमास ३०॥ साढ़े तीस दिनरात्रि प्रमाण का होता है । चंद्रमाम २६ उन्तीस दिनरात्रि और एक दिनरात्रि के ६२ बासठ भाग करके उनमें से ३२ भागयुक्त हो याने २६॥ साढे उन्तीस दिनरात्रि का होता है । क्योंकि चंद्रकला की हानि तथा वृद्धि के निमित्त से तिथि संबंधी काल कमती होता है और सूर्य के चलने के निमित्त से दिनरात्रिसंबंधी काल अधिक होता है। वास्ते सूर्यमास ३०॥ दिनरात्रि प्रमाण का और तिथिसंबंधी चंद्रमास २६ ।। दिनरात्रि का होता है, तो एक दिनरात्रि अधिक हुआ। इस गणित के विचार से सूर्यसंवत्सर संबंधी ३० तीस मास वीतने पर एक चंद्रमास अधिक होता है । फिर सूर्य संवत्सर संबंधी ३० तीसमास वीतने पर दूसरा चंद्रमास अधिक होता है अर्थात् एक युग में चंद्रमास ६२ और सूर्यमास ६० उक्त गिनती में माने हैं । सूर्यचार में अधिकमास गिनती में नहीं, ऐसा आपके उक्त उपाध्यायों का मंतव्य मान लेवें तब तो एक युग की गिनती में
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