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अते महावीर, ए बे नामनो निक्षेप गुणपूर्वक अयेलो छ. एम शासना संकेतथी जाणवामां आवे छे, ॥
हवे जूवो प्रथम तीर्थकरनुं नाम 'रूषभ छे, ते रूपम शब्द व्याकरणना संकेतथी बलदनुं नाम छे ते पण अनादिथी सिद्धज छे, अने तेज रूपम शब्दनो आरोप भगवाननी साथलोमां बळदनुं चिन्ह जोइ माता पीताए करेलो छ, अने शास्त्रना संकेतथी ते आपणे जाणी पण शकीये छीये, अने जीव अर्जावरूप वस्तुमांज थयेलो छे, तो पछी तीर्थकरोनां नाम ते 'नामनिक्षेप' न कहेवाय एवं कया सिद्धांतना आधारे कहो छो ? ते सिद्धांतनुं नाम प्रगट करो, अने जो अनुयोगद्वार सूत्रना, आधारथी नामनिक्षेपनी ना पाडता हशो तो ते, तमारु लखवू तदन अयोग्यज छे, केमके ते सू
मां तो जीव अजीवरूप एक वस्तुमां पण नामनो निक्षेप करवानो कहेलो छ, । अने तीर्थकरो छे ते पण जीव अजीवरूप एक वस्तुज छे, वास्ते नाम छे ते नामनो निक्षेप नही एवं त्रण काळगां पण तमाराथी कही शकाशे नही, ॥ ___वळी पण दाखला जूवो के साधु, अने राजा, आ पण बे नाम छे, ते अनेक पुरुषोमां वखतो वखत अपायाज करे छे, अने कोइमां गुण पूर्वक होय छे, अने कोइ पुरुषमा गुण विनानुं पण जोवामां आवे छे, तो तेने नामनिक्षेप नही कहो तो बीजुं शु. कही शकवाना छो ? तेनो पण जरा युक्तपणाथी विचार करो, अने जैनोना सिद्धांत सामी दृष्टि करो. तमो आपणी मूर्खताइ तरफ लक्ष न देतां, लाखो आचार्यमां भूल बतावो छो, ए कया प्रकारनी तमारी मूर्खताइ गणवी. : आ वातमां घणो पुक्तपणाथी विचार करवानो छे, केमके एतो तीर्थकरोतुं सिद्धांत छ, वास्ते विपरीतपणे
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