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________________ पै लिखा, अंगुलिसे लिखा "छेवटमां लखे छे के, । आवश्यक करनेवालेका रूप, अर्थात् हाथ जोडे हुए ध्यान लगाया हुआ, ऐसा रूप, उक्त भांति लिखा है. ॥ आ ढूंढनी पार्वतीना लेखथी पण विचार करी जूत्रो के, आवश्यक सूत्र, अने आवश्यक क्रिया करवा वाला साधुनी, स्थापना करवाना अभिप्रायथी, सूत्रकारे सूत्रनी रचना करेली छे के नहि ! अगर जो ए बने प्रकारना अभिप्रायथी मुत्रनी रचना थयेली न होत तो, । ढूंढनी पण || काष्टपै लिखा, पोथीपै लिखा, विगरेनो अर्थ, । अने, हाथ जोडे हुये ध्यान लगाया हुआ, साधुनो अर्थ, कोइ दिन पण करी शकती नहि अने आ निक्षेपना विषयमा शुं शुं फरक अमारा ढूंढक भाइयो करे छे, अने आ विषयमा केवी पहोच धरावे छे, तेनो विचार प्रसंगे प्रसंगे बतावता जशुं || इति आवश्यकनाद्वितीय स्थापना निक्षेपनो सूत्रार्थः हवे ही स्थापना निक्षेपनुं लक्षण कहीये छाए. छंद आर्या. यत्तु तदर्थ वियुक्तं, तदभिप्रायेण यच्च तत्करणि । लेप्यादि कर्म्म स्थापनेति क्रियतेऽल्पकालंच ॥ १ ॥ अर्थ:- जे मूल वस्तुमां गुण छे ते गुणथी तो रहित, अने नाज अभिप्रायथी ( एटले के तीर्थंकरादिकना अभिप्रायथी ) तेमना सदृशपणाथी करणि ( एटले तेमना जेवी करणि) अथवा अन्यथा प्रकारथी, एटले के तेमना जेवी आकृति विनाथी पण, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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