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________________ भविय शरीर द्रव्य निक्षेपना आधारे का. ३ लोकने विषे शत्रुने जीते, एटले चक्री, वासुदेव, राजा विगेरेने, लौकिक द्रव्य निक्षेपनी दृष्टिए, अरिहंत कहे. ४ हरि, हर, ब्रह्मा, आदि देवने, कुमा वचनिक द्रव्य ... निक्षपेनी दृष्टिए, आरिहंत, कहे. ५ जैन धर्ममां होय पण केवल ज्ञान पांम्यो न होय छता पोताने अरिहंत कहे वडावे. ते, लोकोत्तर द्रव्य अरिहंत. ( गो सालाना दृष्टांते ) ४ भाव निक्षेप. केवल ज्ञानादि सहित जे वर्ते छे ते, भाव अरिहंत, खरखरो अरिहंत तो तेज, अने वंदनिक पण तेज, बाकी नामनो माणसके पथ्थर कोइनु कल्याण करीसके नही. ॥ पृष्ट. ६३ तक.॥ इति अरिहंत उपर घटावेला चार निक्षेप, सम्यत्क. अथवा धर्मना दरवाजाथी लखी बताव्या छे.॥ हवे पृष्ट, ६३ थी सूत्र उपरना लखीये छे॥ ॥ सूत्रः ॥ १ नाम निक्षेप-कोइ पण पाणी पदार्थ- सूत्र एवं नाम.॥ २ स्थापना निक्षेप-सुत्र तरीके कागल मुकी तेने सूत्र माने.।। ३ द्रव्य निक्षेप-लखेलां. पांना.॥ ४ भाव निक्षेप-सूत्रोमांनां तत्वो. [ वांचनार जे ग्रहण करे छे. ते.॥ श्री अनुयोगद्धारमांकयुं छे के, पेहेला त्रण निक्षेप "अवश्थु" एटले उपयोग विनाना छे, छेल्लो चोथोज आ लोकमां उपयोगी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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