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________________ १७६ र्थ करेलो पसंद पडवानुं कहे छे, तो जो कोइ धर्मज्ञ पुरुष हशे ते तो आवा स्वछंदपणाना अनुचित लेखोथी दूरज रहेशे, एम अमारी भलामण छे, केमके समुद्र जेवी गंभीर बुद्धि वाला महापुरुषोथी लखायला लेखोनो अनादर करी, आज कालना जन्मेला अल्पमतिओ वालाए, स्वछंदपणे लेख लख्या होय, तेना उपर आदर करी, आपणा कल्याणनी इच्छा राखवी, ते कोइ दहाडो पण प्राप्त थइ शकवानी नथी, एवं खासपणे विचार करवानो छे. ।। वली ढूंढक - पृष्ट. ११० मां लखे छे के, ॥ समकित विना, धर्म ए नामनोज संभव नथी, ॥ चेतन ते प्रीछ्यो नहि, शुं थयो व्रत धार । साल विहुणा क्षेत्रमां, वृथा बनावी वाड । १ ॥ विचार - कोइ पण पुरुष आ लेखनो विचार करतां मने जरुर पुछशे के, आ लेखमां ते तमो शुं खोट काडीने बताववाना छो ? परंतु अमोए उपरनो लेख जे लखीने बताव्यो छे, ते पुष्टि करवा माटे लखीने बताव्यो छे, परंतु खोटो ठराववा, लखीने बताव्यो नथी । केमके आलेख उपरथी विचार करवानो एछे के, । समकित विना, धर्म एनामनोज संभव नथी। एटलं तो अमारा ढूंढक भाइयो पण जरुर मान्य राखी, लखीने पण बतावे छे, त्यारे ज्यारथी विचारवानुं ए छे के आ जैनधर्मनी प्रवृत्ति चाली आवे छे, त्यारथीज ते सम्यक्त्व, सर्व प्रकारना धर्मनी प्राप्ति करवामां मुख्यपणे पाया रूप छे, एम आपण सर्वने, अवश्य मानवंज पडशे ? केमके ते सम्यक्त्व विना, बीजा एक पण आत्मिक धर्मनी प्राप्ति, यथा योग्यपणे थइ शकती नथी, तेथी art अनेक प्रकारनी क्रियाओ करवा छतां पण, जो सम्यक्त्व प्राप्त नथ होय तो, ते सर्व क्रियाओ, स्वार्थ सिद्धि विनानी गणाय ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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