________________
१४८ नथी, । आतो ढूंढक, अने ढूंढकडीनु, लखाणज सर्वथा प्रकारथी उपयोग विनानु थयेखें छे.
कारणके-साधुना ओघो मुहपत्ति विगरे उपकरणो, तेमन आहार, विहार, आदिक व्यवहारनी शुद्धि वाली, द्रव्य निक्षेप मुधीना विषयनी जैन मार्गमां वर्णन करेली क्रियाओ पण, नव ग्रैवयक मुधी पोहचाडवाना सामार्थ्य वाली छे. ___ अने श्रावकोना सम्यक व्रतादिकनी जे जे क्रियाओछे ते पण पूर्णपणे अध्यात्मिक विषयवाला, भावनिक्षेप विनानी, अने द्रव्यनिक्षेपमुधीना विषयवाली होवा छतां पण बारमा देवलोक मुधी. पहोंचाडवानी सामार्थ्यवाली छे । - आ जे साधुनी, अने श्रावकनी, क्रियाओना सामर्थ्य पणार्नु, वर्णन करीने बताव्युं ते वधुए पाये, नैगमादिक चार द्रव्यार्थिक नयोना स्वरूपथी, विजा द्रव्य निक्षेपना विषय सुधीनी क्रियाओना सामर्थ्य पणाथीन सिद्धांतोमा वर्णन थयेटु छे. । अने ते क्रियाओना करवा वाला पुरुषोनेज, सर्व जैननो समुदाय, तेमज वीजा भद्रिक परिणामी लोको पण, मानज आपी रह्या छे. । अने ते अध्यात्मिक भाव निक्षेपना विषय विनानी, अने द्रव्य निक्षेपना विषय सुधीनी, क्रियाओना करवावाला साधुओ पासेथी पण, प्रति बोधने प्राप्त थया पछी, अनंत भव्य जीवो, अध्यात्मिक तीव्र आत्माना परिणाम, के जे शब्दादिक त्रण पर्यायार्थि नयोना विषयवाला, चोथा भावनिक्षेपना स्वरूपना छे, तेने प्राप्त थइने, मोक्ष पोता छे. । एवा सिद्धांतोमां लेखो छे. । अने ते मोक्षगामी जीवो जे मोक्षे पोत्या छे ते पण, द्रव्यनिक्षेपना विषयवाला पुरुषोना कर्त्तव्योने उत्तमपणे मान आपीनेज पोत्या छे. । अगर जो ते मोक्षगामी जीवो, द्रव्यनिक्षेपना अधिकार मानने प्राप्त थयेला साधु पुरुषोने, मान न आपता तो,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com