________________
१४७
जैन सिद्धांतोमां, वर्णन करेली क्रियाओना, निक्षेपोनुं स्वरूप.
जैन सिद्धांतोमां, वर्णन करेली क्रियाओना, निक्षेपोनुं स्वरूप. पाठकवर्ग ? जैन सिद्धांतोमां, वर्णन करेली, साधुओना पंच महात्रतादिकनी क्रियाओ, तेमज श्रावकोना सम्यक्त्व व्रतनी क्रियाओ पंच अनुव्रतनी क्रियाओ, त्रण गुणत्रतनी क्रियाओ, समायिकत्रत, देशावका शिकव्रत, पोषघत्रत, अतिथिसंविभागवत, ए चार शिक्षात्रतनी क्रियाओ । एकंदर ए सम्यक्त्व धर्मनी क्रिया पूर्वक सर्वे बारां व्रती क्रियाओ छे, ते, अने दान, शील, बाह्य तपादिकनी, क्रियाओछे, ते सर्वे प्राये, १ नैगम नय, २ संग्रहनय, ३ व्यवहारनय, अने ऋजुसूत्रनय, आ ४ जे द्रव्यार्थिक चार नयो छे, तेना संबंधथी जोडाइने, प्रथमना त्रण निक्षेपो सुधीनीज क्रियाओनुं वर्णन थयेलुं छे. ॥
जेमके सम्यक्त्व अहिंसादिकवतोनां नामो, तेमज सामायिक, पोषध व्रतादिकनां, जे जे क्रियाओनां, जे जे व्रतोनां, जे जे सिद्धांतकारोए नाम आपेलां छे, तेते सर्व नामनिक्षेपनाज विषयभूतनां छे । अने जे जे ते क्रियाओनां साधनभूत उपकरणो, अने तेमां रहेली क्रियाओ छे, ते सर्व द्रव्य निक्षेपनाज विषयभूतनां छे। अने ते सर्व व्रतानां नाम, अने तेनां साधनो, अने ते विषयमा रहेली क्रियाओ छे ते सर्व, अल्पसंसारी पुण्यात्मा भव्य पुरुषांना, भावनेज उत्पन्न कराववा वाली होवाथी, सदासर्वकाल वस्तुरूपनी उपयोगवालीज छे । परंतु, ढूंढनी पार्वतीए, अने इंढक वाडीलाल, सिद्धांतकारोना आशयने समज्या वगर, जे प्रथमना त्रण निक्षेपोने, निरर्थक, अने उपयोग विनाना ठराव्या, ते प्रमाणे उपयोग विनाना
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com