________________
नथी, तेनुं कारण काइ समजायु नहि. शुं तमोएं तमारी अफलथी लख्या छे के मूर्तिपूजकोना ग्रंथनी चोरी करीने लख्या छ, तेनुं वाचक वर्गने शुं समजवू ? अमारा जाणवा मुजब तो, तमोए मूर्तिपूजकोना ग्रंथनीज चोरी करीने लख्या होय एम जणाय छे. केमके तमाराथी थरेली मोटी मोटी भूत्यो जोवामां आवे छे. अने भूल पण त्यांज थाय के, जे बीजाना घरनी चोरी करीने साहुकार बनवाने जाय. अगर तमो सूत्रथी, अथवा तमारा मान्य करेला प्रकरण ग्रंथथी, लख्या होय तो तेने सर्वथा प्रकारथी मान्य राखी नाम प्रगट करो ? अगर तमो लखसो के, अमोए अमारी अकलथी लख्या छे. के गमे त्यांथी लख्या छे. तमने पुछवानी शी जरुर छे. तो तेमां जणाववान एटलुंज के, धर्मना दरवाजाने जोवानी इच्छा तो, सर्व प्राणीमात्र ने होय छे, तेम ते धर्मना दरवाजाने, जोवानी अमोने पण पूर्ण अभिलाषा थयेली छे. तेथी ठाम ठेका' पुछवानी जरूरज छे. तमो कहे सो के, अमोए तो अमारी अकलथी लख्या छे. तो तमारा अने अमारा जेवा अल्पमतिना पुरुषो, आ जैनधर्मनो दरवाजो बतावी शके नहि, एवो निश्चय करी तमारा तुछ लेखनी उपेक्षा करी छोडी देइशं. अने ते जैनधर्मना दरवाजाने जोवा सारु, सागर बुद्धिना महापुरुषोने ज, आश्रित थइशं. अने तमो जेना घरनी चौरी करोछो तेमनेज, तुछकार करी, विचार शक्ति पामेलानी पंक्तिमां, दाखल थवा जावोछो, ए कांइ तमारु, सज्जनपणानु लक्षण जनातु नथी. आ अमारा करेला विचारने, एकांतमां बैसी निःपक्षपातपणे, विचार करी जोसो एटले मालम पडशे. अने जो खलपणुज धारण करी, वांकी नजरथी जोसो तो, उलटुज मालम पडशे. तेमां तो तमारी प्रकृतिनोज दोष गणाशे.
हवे मूलना विचार उपर आवीये छे. ॥ तमोए जेवी रीते
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com