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________________ १२३ तो पण, उपयोग विनाना सामायिक सूत्रनो पाठ भणवावालाना, 66 सामायिकने " अवस्तु वरीनेज माने छे । त्यां एवो पाठ छे के. ॥ ति एहं शद नयागं, जाण ए, अणुव उत्ते " अवथ्थु " ॥ || आ सूत्रनो अर्थ ए छे के मुत्रना अर्थना जाण छे, पण, भणती वखते, उपयोग ना होय तो ते शब्दादिक ऋण नयो, अवस्तु करीने माने छे । कारणकं " शब्दादिक गन्यो " द्रव्य स्वरूपन, मान, आपतीज नथी. ॥ 66 || आ विषयने समज्या वगर, सत्यार्थना पृष्ट. ६ मां-ढूंढनीए, एम लख्युं जे इस द्रव्य आवश्यक उपर, सात नय उतारी है, जिसमें तीन सत्य नय कही है. । एम लखीने छेवट पृष्टना अंतमां लख्युं जे गुणविना वस्तुको अवस्तु प्रगट करती है ॥ || वाडीलाल पण- आज विषयना पाठने समज्या वगर, ऋण निक्षेप उपयोग विनाना छे, एम पृष्ट ६४ मां सर्वथा प्रकारथी लखीने बताव्या. || अने पृष्ट ७८ मां, शब्दादिक ऋण नयोनी मान्यताथी, अवस्तुरूपे लखीने बताव्या. ।। आ विषयनो विशेष खुलास कोई बीजा प्रसंगे जोइशुं ॥ अहीं सुधी १ आगम थी " द्रव्य सामायिकनुं " स्वरूप जाणवुं. ।। ॥ हवे २ नो आगमथी, द्रव्य सामायिकनुं स्वरूप लखीने बतावये छीये. ॥ ॥ नो आगमथी द्रव्य सामायिक ऋण प्रकारनुं छे. । १ जाणग सरीर, २ भविय सरीर, ३ जाणग भविय वतिरिक्तं । एम ऋण भेद छे. ॥ " हवे एनो तात्पर्य " ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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