SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११९ | ॥ हवे जुवो के - न्याय नीतिना चलनथी, अंतःकरणनी शुद्धीने प्राप्त थयेला शुद्ध श्रावकने, जे वे घडीना काल सुधी, समता भावमां लीन थवं, तेवा भाव गुणरूप वस्तुनुं नाम, सिद्धांतकारोए, “सामायिक " ( अर्थान देशविरतिरूप ) आपलं छे. तेथी ते समतारूप भाव गुण वस्तुमां, अथवा छ आवश्यकना एक विभागरूप " अध्ययनमां" आ " सामायिक " नामनो निक्षेप करी, ते वस्तु जणावेली छे। अने सामायिक नामना उच्चारण मात्रथी पण, जैन सिद्धांतना संकेतने जाणवावाळा पुरुषो तो, ते समताभाव गुणरूप वस्तुनुंज नाम समजे छे, अथवा सामायिक नामना अध्ययननुं नाम समजे छे, तेथी ते “ समता भाव गुण वस्तुनो " अथवा " सामायिक अध्ययननो, " सामायिक ए नामनिक्षेप थयो समजवो. || जो इहां श्रावको आश्रय लीधा वगर, अध्ययनरूप वस्तुने सामायिक कहे तो, अचेतनरूप वस्तुनो नाम निक्षेप थयो समजवो. । अने जो पथरणा, घडी, चरवलो, मुहपत्ति ना साधन विना, केवल समता भावमां लीन थयेला, श्रावकनी विवक्षाने ग्रहण करी, सामायिकरूपथी कहे तो ते, चेतनरूप वस्तुमां “ सामायिक " नामनो निक्षेप थयो समजवो. । अने पथरणादिक सर्व सामायिकना कारणानी विवक्षाने साथमां ग्रहण करी, श्रावकने सामायिक वाळो कहेतो, चेतन अचेतनरूप वस्तुमां, " सामायिक "" नामनो निक्षेप कहेवाय. ॥ आ वधुं विशेष अवशेषपणे कहेवामां मात्र नयोनीज वि. चित्रता समजवानी छे. ॥ जेवी रीते छ अध्ययनना समुदायरूप, आवश्यक क्रियारूप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy