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________________ पछी अरिहंतोने परमपूज्य मानवा वाळा जैनोथी, आपणी काळमु. खी जीव्हाने चलावी, वीतरागना त्रण निक्षेप, उपयोग विनाना छे, एम केम कही शकाय ! म्लेच्छो कहे ते वात जूदी छे. । जे तीर्थकरोना, एक नाम निक्षेप मात्रनी पण, रात अने दिवस जपमाळा गणी, अमारा कल्याणनी इच्छा करी रह्या छे, अने मुखथी उपयोग विनानो कहीये छीये, आते अमारी कया प्रकारनी मुर्खता, ते काइ समजातुं नथी. ॥ हवे अमो वाडीलालनाज, लेखना विचारथी, उपादेयना निक्षेपोर्नु, उपादेयपणु लखी बतावीये छोए.॥ ॥ वाडीलाल-पृष्ट ६३ मां, सूत्रना, चार निक्षेप लखता, बीजा, अने त्रिजा, निक्षेपमां, लखे छे के, ॥ ॥२ स्थापना निक्षेप-सूत्र तरीके कागल मुकी तेने सूत्रमाने. ॥ ॥३ द्रव्य निक्षेप-लखेलां पानां. ॥ ॥ तेमज पृष्ट, ८२ मां-ज्ञाननो, स्थापना निक्षेप, अने द्रव्य निक्षेप, जूवोके, ॥ ॥२ स्थापना निक्षेपे ज्ञान-ज्ञाननी स्थापना करवी॥ ॥३ द्रव्य निक्षेपे ज्ञान-लखेलां पुस्तक पानां. ॥ ॥ आ अमारा ढूंढक भाइना लेखी, विचार करवाना ए छे के, “ कागलनी, स्थापना " करवी ते पानां लखेलां के कोरां! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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