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चौलुक्य चंद्रिका ]
दामाजी की मृत्यु हुई। उसकी मृत्युका सम्वाद पाते ही माधवरावने गायकवाड़की शक्ति का नाश सम्पादनके विचार से पूनामें बन्दी रूपसे रहनेवाले गोविंदरावसे हस्ताक्षर कराकर उसे दामाजीका उत्तराधिकारी स्वीकार किया। परिणाम उसका सन्तोष जनक हुआ। क्योंकि फतेहसिंह जो गुजरात में था सयाजीरावको गद्दी पर बैठा अपने आप उसका अभिभावक बन गया । गृह कलहका कुर दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा । गोविंदराव और फतेहसिंह एक दूसरेके कट्टर शत्रु- बन गये । कुछ दिनों के बाद पेशवाने गोविंदरावके स्थानमें सयाजीरावको दामाजीका उत्तराधिकारी और फतेसिंहको उसका अभिभावका स्वीकार किया। अनन्तर पेशवाने आज फतेसिंहको निकाला तो कल गोविंदराव को अपनाया । पेशवा का यह कार्य ठीक उसी प्रकार हुआ जैसा कि दामाजी प्रभृतिविजयपुर (बांदा) के गृह कलहमें स्वार्थ साधनाथ किया था। इतनाही नहीं अंग्रेज वणिक् संघने पेशवा और गायकवाड़का मूलोच्छेद करनेके विचारसे इस नीतिका अनुकरण किया।
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हमने पूर्वकी पंक्तियोंमें पेशवाको गायकवाड़की शक्तिका नाश संपादन करनेके लिए ग्रह कलहको हस्तगत करनेवाला बतलाया है। अतः उसका विशेष दिग्दर्शन कराते हैं 1 इधर गुजरात में दामाजी गायकवाड़ की मृत्यु पाटनमें हुई। और उसके पुत्र सयाजी, गोविन्द, रामराव उर्फ मल्हारराव मानाजीराव और फतेहसिंहराव के मध्य उत्तराधिकारका विवाद उपस्थित हुआ। पेशबा इस अवसरकी प्रतीक्षामें बैठे थे । गोविन्दराव अपने पिता की मृत्यु समय पूनामें था। उसने पेशबाको बहुत बड़ी भेट देकर अपनेको दामाजीका उत्तराधिकारी स्वीकार करा लिया । परन्तु फतेहसिंह सयाजीको गड्दी पर बैठा उसका अभिभावक बना। अतः कुछ दिनों बाद पेशवाने गोविन्दरावके पूर्वदत्त अधिकारको अस्वीकार कर, सयाजीरावको उत्तराधिकारी और फतेसिंहराव को उसका प्रतिनिधि स्वीकार कर गायकवाड़ वंशके गृह कलहको प्रचण्ड रूप धारण करनेका अवसर प्रदान किया ।
गोविन्दराव गायकवाड़ और फतेसिंहके विद्रोहको प्रचण्ड रूप धारण करनेवाला हम बता चुके हैं। उक्त विग्रहमें फतेसिंह अपनेको गोविन्दराजका सामना करनेमें असमर्थ पा " ब्रिटिश वशिक संघ ” के शरण विक्रम संवत् १८२८ में गया परन्तु उन्होंने उसकी प्रार्थनावर विशेष ध्यान नहीं दिया । परन्तु कुछ दिनों बाद ब्रिटिश वणिक संघ और फतेसिंहके मध्य “आक्रमण और प्रत्याक्रमण में परस्पर सहयोगात्मक” सन्धि स्थापित हुई। उक्त संधिब्रिटिश जातिके गुजरातमें अधिपत्यका मार्ग
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