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मीसाजीके पेटमें भोंक दिया। इस प्रकार पीलाजीको रुस्तमखांके साथ किये हुए अपने विश्वासघातका पाल विक्रम १७८८ में भोगना पड़ा । एवं “इस हाथ दे और उस हाथ ले" कथानक चरितार्थ हुमा।
पीलाजीके इस प्रकार विश्वासघातसे मारेजानेका संवाद पाकर वटपद्राके देशाईने अपने मित्रकी मृत्युका प्रतिशोध करनेके लिये भीलोंको एकत्रित कर उपद्रव मचाया । और उक्त देशाईका हाथ बटानेके लिये पीलाजीका भाई मालोजी जम्बूसरसे आगे बढ़ा और शेरखां बाबीको मार भगा बोदाको हस्त गत किया। इधर पीलाजीके आठ पुत्रोंमेंसे ज्येष्ठ पुत्र दामाजी सोनगढ़से सेना लेकर आगे बढ़ा । और मार काट, लूट खसोट का बाजार गरम किया। दामाजी साम, दाम, विभेद आदि द्वारा समस्त गुजरातको स्वाधीन करने लगा। अभयसिंहके प्रतिनिधिको अहमदावादसे मार भगाया। लूटपाट करता हुआ जोधपुरके समीप तक पहुंच गया। विक्रम १७९६ में दामाजीके सेनापति राघोजीने फकीरुदौला, जो गुजरातका सूबा बनाया गया था, को आगे बढ़नेसे रोका । दामाजीने फकीरुदौलाको सूबा न स्वीकार कर अपने हाथके कठपुतला मोमीनखांको सूबा बनाया । इसी वर्ष बाजीराव द्वितीय पेशवाकी मृत्यु नर्मदा काठेके रावेर नामक स्थानमें हुई । और उसका पुत्र नानासाहेब उर्फ बालाजी बाजीराव तीसरा पेशवा हुआ।
बालाजी बाजीरावके पेशवा होने परमी दामाजीकी स्वतंत्रतामें कुछ न्यूनता न हुई। इस घटनाके तीन वर्ष बाद विक्रम १७९९ में मोमीनखां मरा और बादशाहने अबदुल अजीजको सूबा बनाकर गुजरात भेजा। परन्तु वह दामाजीके हाथसे मारा गया। अनंतर दामाजीन अपना अधिकार खूब, ही बढ़ाया। यहां तक कि विक्रम १७६७ में उसने मालवाकोभी पदाकान्त किया। इस प्रकार बालाजी बाजीरावके पेशवा होने पश्चात मरहठोंका प्रभाव समुद्र तरंगके समान बढ़ रहा था । परन्तु शाहुका दिन बड़े कष्टमें व्यतीत होता था । उसको अपने एक मात्र पुत्र और प्रिय पालीको मृत्युका घोर कष्ट हुआ। और उसका स्वास्थ्य बिगड़ा । वह अन्तिम दिनकी घड़ियां गिन सबा । मरहटा सरदार शाहुके उत्तराधिकारीके संबंधळं अनेक प्रकारके मनसूबे बांध रहे थे। अन्तमें रानारामके पौत्र और शिवाजीके पुत्र राजारामको गोद लेना निश्चित हुभा। शाहुंकी व शेपासे बालाजीने एक आज्ञापत्र प्राप्त किया। उसके आधार पर वह मरहठा साम्राज्यका सर्वे
बन गया। राजारामको राजा बनाना निश्चित रूपसे घोषित किया गया। एवं उक्त माझा के अनुसार कोल्हापुस्को स्वतंत्र राज्य माना गया । पश्चात् शाहुकी मृत्यु हुइ ।
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