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[प्राक्कथन आगे पैर बढ़ाया। उसकी एक टुकड़ी चित्तौर होकर उज्जैन पर्यन्त गई और दूसरी टुकड़ी भीनमाल होकर भृगुकच्छसे और आगे कमलेज पर्यन्त चली आई थी। परन्तु उसे विक्रम ७६६ में हार कर लौटना पडा था ।
___इस घटनाके अनन्तर यद्यपि मुसलमानोंके भारतीय अधिकारकी वृद्धि क्रमशः होती गई। यहांतक कि भारतमें तुक वंशकी स्थापना हो गई। भारतकी राजधानी दिल्ही उनके अधिकारमें आ गई। परन्तु हमारे इतिहासके साथ उनका कोई संपर्क न हुआ। परन्तु मुसलमानोंके तीसरे राजवंश ( खिलजीवंश ) के तीसरे सुलतान अलाउद्दीन खिलजीके साथ हमारा संबंध स्थापित होता है। अलाउद्दीन खिलजी अपने चचा जलालुद्दीनके समय कड़ाका हाकिम था। उसी समय उसने देवगिरीके यादवोंपर आक्रमण कर बहुतसा धन रत्न प्राप्त किया था। एवं हिजरी सन ७०६ तदनुसार विक्रम १३५७ में वह दिल्हीका सुलतान हुआ और गद्दीपर बैठतेही उसने राजपूताने पर आक्रमण किया, एवं रणथंभोर पर विक्रम १३५८ में-चित्तौरपर १३६० में। अनन्तर सिवाना-जालौर-पाटन-मालवा श्रादिको अपने आधीन किया । यहां तककी अलाउद्दीनके सेनापति मलिककाफूरने देवगिरीके यादवराव रामदेव-वगलाणके राजा प्रतापचन्द्र, होयसल राज आदिको पराभूत किया । और एक प्रकारसे समस्त भारत अलाउद्दीनके अधिकारमें आ गया। अलाउद्दीनका राज्यकाल विक्रम १३५३ से १३७२ तदनुसार हिजरी ७०६ से ७२५ पर्यंत है।
गुजरात के मुसलमान ।
अलाउद्दीन खिलजीने विक्रम १३६५ के आसपास पाटनके वघेल वंशका उत्पाटन कर गुजरातको अपने राज्यमें मिला लिया । और गुजरातमें अपना सूबा नियुक्त किया। इस समयसे लेकर विक्रम संवत् १४५३ पर्यंत (खिलजी वंशके अन्त समय और उसके बाद तुगलकोंके आरंभसे मध्यकाल पर्यंत ) गुजरातका शासन दिल्ही सुलतानोंके सूबाओंने किया। परन्तु उसी वर्ष मुजफ्फरशाहने गुजरातमें स्वतंत्र मुसलमान राज्यकी स्थापना की। इस वंशका राज्यकाल विक्रम १४५३ से १६१८ पर्यंत १६५ वर्ष है । इस अवधिमें इस वंशके १४ राजा हुए । गुजरातके मुसलमानोंकी वंशावली निम्न प्रकारसे है।
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