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चौलुक्य चंद्रिका ]
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उधृत वंशावली पर दृष्टिपात करनेसे प्रगट होता है कि पुलशक्ती जिसका विना संवतका लेख कृष्णागिरीकी गुफा संख्या ७८ में उत्कीर्ण है, अपने वंशका द्वितीय राजा था । पुलशक्ती अपने कथित लेखमें स्पष्टतया अपने आपको राष्ट्रकूट अमोघवर्षका सेवक तथा कोकण मंगलपूरीका शासक घोषित करता है । अब विचारना है कि कथित राष्ट्रकूट अमोघवर्ष कौन है। प्रस्तुत शिलालेख की तिथि न होने से कुछ मंझट सामने आती है क्यों कि राष्ट्रकूट वंशमें अमोघवर्ष नामक अनेक राजा हुए हैं । तथापि पुलशक्तीके पुत्र औरउत्तराधिकारी कापा द्वितीयके कृष्णागिरी की गुफा संख्या १० वाले शिलालेख, जिसकी तिथि शक ७७५ है, हमारा त्राण करता है। क्योंकि कथित लेखको दृष्टिकोणमें रख कर हम निर्भय होकर कह सकते हैं कि पुलशक्तीका समय अधिक से अधिक ७५० पर्यंत पीछे जा सकता है। पुलशक्तीका अनुमानिक समय, ७५० प्राप्त करनेके पश्चात् उसके स्वामी अमोघवर्षका समय प्राप्त करना कोई कठिन काम नहीं रह जाता है। राष्ट्रकूटोंके इतिहास विवेचन करते समय पूर्वमें हम दिखा चुके हैं क़ि शक ६६६ के कुछ पूर्व मान्यखेटके राष्ट्रकूट दन्तिवर्माने लाट और मालवा आदिको स्वाधीन किया था । और दन्तिदूर्गके उत्तराधिकारी और चचा कृष्णके द्वितीय पुत्र ध्रुव ने अपने बड़े भाई गोविंद को हटाकर स्वयं गद्दी पर बैठा था । एवं राष्ट्रकूटोंके अधिकारको खूब बढ़ाया था । भ्रुवने अपने बड़े पुत्र गोविंदको राज्यके उत्तरांचल प्रदेशका शासक नियुक्त किया था । जिसने मयुरखण्डको अपनी राजधानी बनाया था । और इसके अधिकारमें प्रायः नासीक, थाना सुरत और भरुच आदि जिलाओं तथा बरोदाका नवसारी प्रांत - वांसदा और धर्मपूर आदिके भूभाग थे । गोबिंद शक ७३० में अपने छोटे भाई इन्द्रराजको लाटका शासक बना स्वयं दक्षिण जाकर प्रधान शाखाकी गद्दी पर अपने पिता के पश्चात् बैठा गोविंदकी मृत्यु शक ७३६ के पूर्व हुई और उसका पुत्र अमोघवर्ष गद्दी पर बैठा । और शक ७३६ से शक ७९१ के पश्चात् पर्यंत राज्य किया । पुलशक्ती और उसके पुत्र कापदि द्वितीयके लेख इसी अमोघवर्षके राज्यकालमें पड़ते हैं । अतः हम पुलशक्तीके स्वामी अमोघवर्षको मान्यखेटपति राष्ट्रकूट गोविंद तृतीयका पुत्र और उत्तराधिकारी अमोघवर्ष घोषित करते हैं ।
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कापर्दि द्वितीयके पूर्व कथित कृष्णागिरीकी गुफा संख्या १० और ७८ के शिलालेख ७७५ और ७९५ के पर्यालोचनसे प्रगट होता है कि वह अपने पिता के समान राष्ट्रकूटोंका
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